Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Nov 2017 · 5 min read

साक्षात्कार- जे पी लववंशी- लेखक, मन की मधुर चेतना- काव्य संग्रह

मध्य प्रदेश के हरदा जिले के रहने वाले, खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग म.प्र. शासन में खाद्य सुरक्षा अधिकारी, जे पी लववंशी जी की पुस्तक "मन की मधुर चेतना- काव्य संग्रह", हाल ही में साहित्यपीडिया पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित हुई है|

लववंशी जी की पारिवारिक पृष्ठभूमि ग्रामीण रही है, जिसकी झलक उनकी रचनाओं में स्पष्ट रुप से दिखाई देती है। उन्होंने स्नात्कोत्तर की शिक्षा गणित, इतिहास और हिन्दी में प्रथम श्रेणी से प्राप्त की है और उन्हें बचपन से ही महाभारत एवं रामायण पढ़ने में अत्याधिक रुचि रही है।

लववंशी जी की पुस्तक "मन की मधुर चेतना- काव्य संग्रह" विश्व भर के ई-स्टोर्स पर उपलब्ध है| आप उसे इस लिंक द्वारा प्राप्त कर सकते हैं- Click here

इसी के सन्दर्भ में टीम साहित्यपीडिया के साथ उनका साक्षात्कार यहाँ प्रस्तुत है|

आपका परिचय

मेरा नाम जेपी लववंशी, पिता श्री एल एन लववंशी| मेरा जन्म एक छोटे से गांव उमरेड, जो मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के ब्यावरा तहसील के अंतर्गत आता है। "गांव हमारा सबसे प्यारा, सबसे निराला" यह भावना मन में हमेशा बनी रही,गांव से एक किलोमीटर की दूरी पर जंगल लगा हुआ हैं । जहां चहुँओर हरियाली का बसेरा है, इन्ही वादियों में उछल कूद करते हुए बचपन हमारा बीता है, प्रकृति से हमेशा तटस्थ रहे हैं ।

आपको लेखन की प्रेरणा कब और कहाँ से मिली? आप कब से लेखन कार्य में संलग्न हैं?

मुझे लिखने से ज्यादा पढ़ने का शौक रहा है| गांव में एक लायब्रेरी थी, जिसमें कहानी की किताबें, महाभारत और रामायण आदि मैं और मेरा मित्र शिव नियमित रूप से पढ़ते रहते थे।लिखने की प्रेरणा मुझे अपने माता पिता, मित्रों और गुरुजनों के आशीर्वाद से प्राप्त हुई है। किंतु इस काव्य को लिखने की प्रेरणा माँ नर्मदा के पावन तट पर स्थित , गांधीजी से हृदय नगर की संज्ञा प्राप्त और कवियों की भूमि हरदा और होशंगाबाद से प्राप्त हुई है| यही दोनों जिले मेरी कार्यस्थली भी हैं। इस काव्य संग्रह की शुरुआत 18 महीने पूर्व की थी।

आप अपने लेखन की विधा के बारे में कुछ बतायें?

मुझे कविता लिखने में अत्यंत रुचि रही है| लिखते समय मन में एक चेतना आ जाती है और मन पूरी तरह उसी में चेतन हो जाता है। जग की सारी वेदना शून्य हो जाती है, विचारो और शब्दों के अथाह सागर में मन कहीं खो जाता हैं ।

आपको कैसा साहित्य पढ़ने का शौक है? कौन से लेखक और किताबें आपको विशेष पसंद हैं?

बचपन से ही आध्यात्मिक साहित्य पढ़ने का शौक रहा है, विशेषकर महाभारत। मैंने बहुत सारे साहित्यिक ग्रंथो का अध्ययन किया है| उनमें विशेषकर रामचरितमानस, रश्मिरथी, गबन, मृत्युंजय, द्रोपदी, गांधारी, चरित्रहीन, कामायनी, श्रीमान योगी, वयं रक्षामह, वैशाली की नगरवधू, स्वामी, महानायक, आवारा मसीहा, इत्यादि| साहित्यकारों में आचार्य चतुरसेन शास्त्री, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, रामधारी सिंह दिनकर, शिवाजी सावंत, चंद्रधरशर्मा गुलेरी, विश्वास पाटिल, शरत चंद्र, तुलसीदासजी, सूरदासजी, विद्या सागर, जायसी आदि|

आपकी कितनी किताबें आ चुकी है?

मेरा यह पहला काव्य संग्रह है ।

प्रस्तुत संग्रह के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

यह मेरा पहला काव्य संग्रह है। प्रत्येक मानव के अंदर एक मन होता है| सभी जानते है कि यह अत्यंत चंचल होता है, सबसे ज्यादा क्रियाशील होता है, पल में गगन छू लेता तो अगले ही पल में धरा की गोद मे समा जाता है। मन में ही विचार उत्पन्न होते है, चिंता और चिंतन करने का कार्य भी मन ही करता हैं। इसी मन के द्वारा, मेरे इस काव्य संग्रह में आध्यात्मिक और आदर्श चरित्रो का वर्णन, शुद्ध प्रेम और विरह, ऐतिहासिक स्थल और प्रकृति चित्रण मधुर चेतनामयी काव्य के रूप में अपनी कलम से उकेरने का एक छोटा सा प्रयास किया गया है।

यह कहा जा रहा है कि आजकल साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है। इस बारे में आपका क्या कहना है?

साहित्य समाज का दर्पण होता है| जो भी समाज में चल रहा होता है चाहे वह क्रांति हो, टेक्नोलॉजी हो, हिंसा हो, कुप्रथाएं हो, नीतिवचन हो यह सब साहित्य में दिखाई देते है। चूंकि वर्तमान दौर पूरी तरह से टेक्निकल उपकरणों वाला है, आज के समय में सारा संसार एक घर आँगन की तरह हो गया है, जिसका प्रभाव साहित्यकार पर पड़ता है, जो उसके साहित्य में दिखाई देता है। यह सही है कि आजकल की भागदौड़ और चमक दमक वाली जीवन शैली में साहित्य पढ़ने वालों की मानसिकता बदली है। आजकल सभी के पास समय की कमी रहती है। शहरी जीवन बड़ा व्यस्त हो गया हैं।

साहित्य के क्षेत्र में मीडिया और इंटरनेट की भूमिका आप कैसी मानते है?

"जो दिखता है, वही बिकता है" वाली कहावत यहाँ भी चरितार्थ होती है| किसी भी प्रोडक्ट से आमजन को रूबरू कराने का माध्यम पहले समाचार पत्र और टीवी होते थे, किन्तु इस दौर में किसी भी प्रोडक्ट का प्रचार प्रसार का माध्यम सोशल मीडिया बना हुआ है। साहित्य के क्षेत्र में भी मीडिया और इंटरनेट आम जन तक उस साहित्य ज्ञान की संजीवनी को पहुँचानेवाले महावीर बने हुए है। अतः कह सकते है कि साहित्य के क्षेत्र में मीडिया की भूमिका अद्वीतिय है।

हिंदी भाषा में अन्य भाषाओं के शब्दों के प्रयोग को आप उचित मानते हैं या अनुचित?

हिंदी भाषा का कोष बड़ा विशाल और समृद्धशाली है| उसमे साहित्यकार की पहली प्राथमिकता यही होनी चाहिए कि अन्य भाषा के शब्दों का चयन न करके हिंदी भाषा के शब्दो को ही प्रयुक्त करना चाहिए। किन्तु बदलते समय के इस दौर में किसी अन्य भाषा के शब्द का प्रयोग अधिक होता है, और सभी हिंदी भाषी जन उससे भली भांति परिचित हैं, तो ऐसे शब्दों का प्रयोग करने में कोई बुराई भी नही है। किंतु अंत मे यहीं कहूंगा कि हिन्द की हिंदी भाषा सबसे महान।

आजकल नए लेखकों की संख्या में अतिशय बढ़ोतरी हो रही है। आप उनके बारे में क्या कहना चाहेंगे?

लिखना एक अच्छी कला है, जिससे मन को असीम शांति का अनुभव होता है। जिस प्रकार अपनी परेशानी किसी को बताने से मन हल्का हो जाता है ठीक उसी प्रकार लिखने से भी मन हल्का और असीम आनंद का अनुभव करता है। लिखने वाले सभी नए लेखकों का स्वागत है| उनके लिए यही कहूंगा कि लिखते समय एक मर्यादा की सीमा होती है, उसका उल्लंघन न करें, किसी अन्य को ठेस न पहुचे, किसी धर्म विशेष की आलोचना से बचना चाहिए| जिस प्रकार बड़ी नदियाँ छोटी नदीयो को अपने साथ निभाकर उसकी अंतिम मंजिल सागर में समाहित कर देती है, उसी प्रकार साहित्यकार को अपनी साहित्यिक विधा से समाज को एक सच्चा ज्ञान देने चाहिए। नई पीढ़ी को सही राह दिखा सके, जिससे वे देश उन्नति के मार्ग में अग्रसर हो सके।

अपने पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

पाठकों के लिए मेरा यह संदेश है कि मन को अनावश्यक भटकाव से बचाना चाहिए जिससे उसमे एक नई चेतना जागृत हो सके , जिसे मन की मधुर चेतना कहते है। इसके लिए अच्छे साहित्य का पठन करना चाहिए, सभी पाठकों से मेरा यह निवेदन है कि एक बार मेरा काव्य संग्रह मन की मधुर चेतना अवश्य पढ़े, और अपने मन को मधुर चेतन बनाये।

साहित्यपीडिया पब्लिशिंग से पुस्तक प्रकाशित करवाने का अनुभव कैसा रहा? आप अन्य लेखकों से इस संदर्भ में क्या कहना चाहेंगे?

यह एक बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म है, जिसके द्वारा हमारी छुपी हुई प्रतिभा को आमजन तक बड़े ही सहज ढंग से पहुँचाने का कार्य किया जा रहा है। सहित्यपीडिया की पूरी टीम को बहुत बहुत धन्यवाद। अन्य लेखकों से यही कहना चाहूँगा की आप अपनी रचना सहित्यपीडिया पब्लिशिंग से ही पब्लिश करवायें, यह बहुत अच्छा है।

Category: Author Interview
Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1171 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रिश्ते
रिश्ते
पूर्वार्थ
ज़िंदगी मोजिज़ा नहीं
ज़िंदगी मोजिज़ा नहीं
Dr fauzia Naseem shad
*** आशा ही वो जहाज है....!!! ***
*** आशा ही वो जहाज है....!!! ***
VEDANTA PATEL
"सतगुरु देव जी से प्रार्थना"......💐
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
रफ़्ता रफ़्ता (एक नई ग़ज़ल)
रफ़्ता रफ़्ता (एक नई ग़ज़ल)
Vinit kumar
3152.*पूर्णिका*
3152.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
हृदय द्वार (कविता)
हृदय द्वार (कविता)
Monika Yadav (Rachina)
नर नारायण
नर नारायण
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
प्यारे बप्पा
प्यारे बप्पा
Mamta Rani
*
*"माँ कात्यायनी'*
Shashi kala vyas
आप की असफलता में पहले आ शब्द लगा हुआ है जिसका विस्तृत अर्थ ह
आप की असफलता में पहले आ शब्द लगा हुआ है जिसका विस्तृत अर्थ ह
Rj Anand Prajapati
"मास्टर कौन?"
Dr. Kishan tandon kranti
आंखों पर पट्टियां हैं
आंखों पर पट्टियां हैं
Sonam Puneet Dubey
"प्रकृति गीत"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
एक दिन
एक दिन
हिमांशु Kulshrestha
..
..
*प्रणय*
संवादरहित मित्रता, मूक समाज और व्यथा पीड़ित नारी में परिवर्तन
संवादरहित मित्रता, मूक समाज और व्यथा पीड़ित नारी में परिवर्तन
DrLakshman Jha Parimal
मैं अकेला ही काफी हू  जिंदगी में ।
मैं अकेला ही काफी हू जिंदगी में ।
Ashwini sharma
Mental health
Mental health
Bidyadhar Mantry
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
थोड़ा सा अजनबी बन कर रहना तुम
शेखर सिंह
दो रंगों में दिखती दुनिया
दो रंगों में दिखती दुनिया
कवि दीपक बवेजा
बंद आँखें भी मोतियों को बड़े नाजों से पाला करते थे,
बंद आँखें भी मोतियों को बड़े नाजों से पाला करते थे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध
SURYA PRAKASH SHARMA
Dard-e-madhushala
Dard-e-madhushala
Tushar Jagawat
*शिक्षक जी को नमन हमारा (बाल कविता)*
*शिक्षक जी को नमन हमारा (बाल कविता)*
Ravi Prakash
चाहते नहीं अब जिंदगी को, करना दुःखी नहीं हरगिज
चाहते नहीं अब जिंदगी को, करना दुःखी नहीं हरगिज
gurudeenverma198
बिना चले गन्तव्य को,
बिना चले गन्तव्य को,
sushil sarna
जो लड़ाई ना जीती जा सके बयानों से..
जो लड़ाई ना जीती जा सके बयानों से..
Shweta Soni
गम‌, दिया था उसका
गम‌, दिया था उसका
Aditya Prakash
मैं विवेक शून्य हूँ
मैं विवेक शून्य हूँ
संजय कुमार संजू
Loading...