साका श्याम जी की छत्री
————————————————————————-
सुनो सुनो एक कहानी,
जिसमे हैं राजा और रानी,
लगती नहीं हैं यह पुरानी,
सुनते जब भी हम जुबानी,
साका श्याम की यह जागीर,
पास बहता हैं निर्मल नीर,
सोलहवी सदी की बात पुरानी,
राजा श्याम और भाग्यवती रानी,
राजा ने बनवाये सोलह खम्भा,
खूबसूरत इतने करें सब अचम्भा,
दिल्ली तक पहुँच गयी यह बात,
अकबर ने करवाई फिर तहकीकात,
हाजी अली को भेजा साका,
चल दिया वो मान हुकुम आका,
राजा श्याम और हाजी में हुई लड़ाई,
स्वराज के लिए राजा ने जान गँवाई,
राजा की याद में रानी ने बनवाई,
एक सुंदर छत्री पत्थर से गढ़वाई,
सुंदर कलाकृति वो लगती सजीव,
प्रेम की निशानी हैं प्रेम की नींव,
मालवा का ताज हैं,
प्रेम का सरताज हैं,
भाग्यवती की जान बसती,
प्रेम की उसमे याद सजती,
एक मान्यता यह भी वहाँ,
प्रसव गाँव में होता नहीं यहाँ,
400 साल से यह रीत चली,
गाँव के अंदर न खिली कली,
शाप कहूँ या अभिशाप कहूँ,
बिन बताए कैसे मैं चुप रहूँ,
एक बार आकर छत्री देखिए,
वास्तुकला का आनंद लीजिए,
अब भी सोलह खम्भ खडे,
लगते अपनी जिद पर अड़े,
धन्य धन्य भाग्यवती रानी,
धन्य हैं उनकी प्रेम कहानी,
लगती नहीं हैं यह पुरानी,
जब भी सुनते हम जुबानी,
—–जेपील