साइकिल
पिता पुत्र के कोप में, अब आ गया चुनाव I
एक एक चक्का पकड़, साइकिल लगे दाँव II
साइकिल लगे दाँव, होती मुश्किल सवारी I
हवा निकली उसकी, लोग को पड़ती भारी II
कहें विजय कविराय, जनता उसको दे जिता I
जिस ओर चले हवा, वो कहाय जन का पिता II
पिता पुत्र के कोप में, अब आ गया चुनाव I
एक एक चक्का पकड़, साइकिल लगे दाँव II
साइकिल लगे दाँव, होती मुश्किल सवारी I
हवा निकली उसकी, लोग को पड़ती भारी II
कहें विजय कविराय, जनता उसको दे जिता I
जिस ओर चले हवा, वो कहाय जन का पिता II