सांस्कृतिक संक्रांति
ठण्ड से छुई-मुई
धूप बासंती हुई
सूर्य की नजदीकियों से
धरा फिर हर्षित हुई ।
जनमन में राम फिर से
जागे संक्रान्ति आई
धर्म संस्कृति जागरण ने
कोहरे से मुक्ति पाई ।
प्राकृतिक क्रम में अगर
असहज दिन आयें फिर से
राम से मर्यादित रहें
रहें, हो भयमुक्त भय से ।
विरासत को चालना दें
जो अहितकर छोड़ दें
चित्त को रंग कर वसंती
धर्म* पथ पर मोड़ दें ।
* कर्तव्य