सांझ पहर मोरा पिया बुलावे
सांझ पहर मोरा पिया बुलावे
सावन में साजन को जिया बुलावे,
बदरिया कमरिया में हलचल करे
बरसे तो रतिया जगावे पिया।
बरिसिया में जब बदरा गरजाय
झूमे जवानी अउर बदन इतराय,
उलझन में करवट से रतिया बितैनी,
भोर पहर मोसे उठही ना जाय।
सबेरे सबेरे जब अम्मा बुलौनी
कहत रहिन बच्चा भईया कब अईहेन,
कईसे कहीं ऊ तो भईलन परदेसिया
दुनिया भर के फिकर बा हमरा नहीं।
इहे सोच हम कुछ हू ना कहनीं,
उदासे ही दिनवा बितौनी पिया,
मनवा के बतिया तोहसें बताईं,
अब हमरो मनवा ना लागत पिया।
छोड़ा अब ऊ परदेसिया सहर
आवा दू रोटी चैन से खाइं पिया,
लग्गे रहा हम्मैं कुछ हू ना चाहीं
आवा कारेजा में तोहंका समाईं पिया।
अम्मों खुश रहिहेन शान दूअरियों रही
बगिया के अमवा ना झुराई पिया,
बरसे बदरिया, अऊर गरजय बदरवा,
सावन में पसीना बहाइब पिया।