*साँस पराया धन है असली 【भक्ति-गीत】*
साँस पराया धन है असली 【भक्ति-गीत】
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साँस पराया धन है असली ,यह न किसी की सगी हुई
(1)
एक दिवस आता है बैरी साँसें आँख दिखातीं
हाँफ-हाँफ कर किसी तरह भारी मुश्किल से आतीं
एक साँस का लेना लगता ज्यों पहाड़ पर चढ़ना
सौ-सौ मन का बोझ लिए पग जैसे आगे बढ़ना
रह जाते सब कोठी-बँगले ,भाग्य-संपदा ठगी हुई
साँस पराया धन है असली ,यह न किसी की सगी हुई
(2)
तेरा-मेरा रटते-रटते धन-दौलत जो जोड़ी
चलते समय धरा पर ही वह गठरी सारी छोड़ी
मुँदी आँख चल देता यात्री ,दोनों हाथ पसारे
वीर विजेता धरती के सब ,महाकाल से हारे
सो जाते सब सजी सेज पर ,चिता चिरंतन जगी हुई
साँस पराया धन है असली ,यह न किसी की सगी हुई
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451