साँझ
मुक्तक
फिर साँझ और ,पश्चिम फिर लाल गुलाबी हुआ
सर्द सी शाम हुई, पाखी मन फिर फानी हुआ
डूबी तन्हाई उदासियों में कोई गमख्वार न था
छोड़ के चल दिया अस्तांचल क्षितिज पारगामी हुआ ..
पाखी_मन…
मुक्तक
फिर साँझ और ,पश्चिम फिर लाल गुलाबी हुआ
सर्द सी शाम हुई, पाखी मन फिर फानी हुआ
डूबी तन्हाई उदासियों में कोई गमख्वार न था
छोड़ के चल दिया अस्तांचल क्षितिज पारगामी हुआ ..
पाखी_मन…