सही वक्त पर
सही वक्त पर काटिये बढ़े हुए नाखून
अगर छिल गयीं उँगलियाँ बह जाएगा खून
बह जाएगा खून ज़ख्म नासूर बनेगा
पत्थर वाला जिस्म भी चकनाचूर बनेगा
कह संजय कविराय वही हैं पछताते अक्सर
निपटाते ना काम जो अपना सही वक्त पर
सही वक्त पर काटिये बढ़े हुए नाखून
अगर छिल गयीं उँगलियाँ बह जाएगा खून
बह जाएगा खून ज़ख्म नासूर बनेगा
पत्थर वाला जिस्म भी चकनाचूर बनेगा
कह संजय कविराय वही हैं पछताते अक्सर
निपटाते ना काम जो अपना सही वक्त पर