सहमी -सहमी सी है नज़र तो नहीं
सहमी -सहमी सी है नज़र तो नहीं
बिखरा -बिखरा है उसका घर तो नहीं,
सिर्फ आँखों से बयां हो जाए
बात इतनी भी मुख्तसर तो नहीं,
एक बस ख्वाब ही तो टूटा है
टूटा उस पर कोई क़हर तो नहीं,
जिस्म में जां तो है,अरमान नहीं
पी लिया है कहीं ज़हर तो नहीं,
तंज करते हो क्या मुहब्बत से
ये तुम्हारा कोई हुनर तो नहीं,
आज उस घर के लोग खुश हैं बहोत
उसकी आई कोई खबर तो नहीं,
उसके आने का वक्त जाता है
वो गया है कहीं ठहर तो नहीं,
इश्क़ कर भी लें और निभा भी लें
इतनी आसान ये डगर तो नहीं,
जितनी वीरान है दिल की बस्ती
उतना उजड़ा तेरा शहर तो नहीं,
उफ्!ये बेचैनियों के हमसाये
ज़िंदगी भर के हमसफ़र तो नहीं!!!