‘सहज’ के दोहे
जीवन है अनमोल यह, इसको नहीं बिगाड़.
यह है दुर्लभ से मिला,समझ नहीं खिलवाड़.
सोच सार्थक हो सदा,दिन कैसे भी होयँ.
निश्चित काटेंगे वही, जो खेतों में बोयँ.
सदा सफलता के नियम,रहें अटल ले मान.
इसी लिए तू कर जतन,छोड़ सभी अभिमान.
आवश्यकता ठीक है, इक्षा का क्या अंत.
सब उस पर ही छोड़ दे, उसकी शक्ति अनंत.
‘सहज’सीख ले पाठ तू,रहे मगन हर हाल.
समय बड़ा बलवान है, मत बांधे पुल-पाल.
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@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/साहित्यकार
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