सवैया
पैजनिया पग में छनके अस, चाल चले श्री कृष्ण कन्हैया।
मोहक मोद भरे मन से दधि, माखन खाइ रहो यदुरैया।
आंगन में बिखरो दधि देखि, भई अति क्रुद्ध यशोमति मैया।
डांट रही फटकार रही चुप, चाप खड़ो बलराम को भैया।
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विनती करता निज दास यही, प्रभु दूर सभी व्यभिचार करो।
करजोड़ खड़े इस बालक के, सिर हाथ अनाथ के नाथ धरो।
जग जीवन के अभिशाप सभी, करुणाकर दीन दयाल हरो।
रसना रसधार रहे बहती, उर भाव सुधा सद्ज्ञान भरो।