सवैया छंदों के नाम व मापनी (सउदाहरण )
सवैया छंदों के नाम व मापनी (सउदाहरण )
1-दुर्मिल (चंद्रकला )सवैया || 2-सुंदरी (मल्ली/ सुखदानी ) सवैया || 3-किशोर ( सुख / कुन्दलता /कुन्तलता ) सवैया || 4-महामंजीर सवैया || 5- अरविंद सवैया,|| 6-मदिरा (मालिनी /उमा/ दिव्या ) सवैया || 7 -मत्तगयंद ( मालती/ इन्दव ) सवैया ||
8- चकोर सवैया, || 9 – किरीट सवैया ||, 10- अरसात सवैया, 11-सुमुखी (मानिनी , मल्लिका) सवैया,||12- वाम (मंजरी, मकरंद, माधवी) सवैया || 13 – मुक्तहरा सवैया || 14–लवंगलता सवैया ||,
15–वागीश्वरी सवैया || 16- महाभुजंगप्रयात सवैया ||
17 -#गंगोदक (गंगाधर /लक्ष्मी/खंजन )सवैया ||
18 -#मंदारमाला सवैया ||19–सर्वगामी (अग्र) सवैया ||
20- आभार सवैया ||
सवैया मापनीयुक्त वर्णिक छंद है। सवैया छंद के प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या निश्चित है , हर वर्ण का मात्राभार भी निश्चित है
सवैया के चरण में वर्णों की संख्या 22 से 26 तक होती है।
इसके चरण में एक ही गण की कई आवृत्तियाँ होती है जिसके अंत में एक से तीन तक वर्ण अलग से जुड़े रहते हैं।
सवैया के चारों चरण सम तुकांत होते हैं और उनमें वर्णों की संख्या एक समान होती है।
कुछ महाकवियों ने कुछ ऐसे भी सवैया रचे हैं जिनके चरणों में वर्णों की संख्या असमान होती है। ऐसे सवैया छंद विधान पर आधारित नहीं हैं , अपवाद है , सम्मान में इन्हें उपजाति सवैया के रूप में स्वीकार कर लिया गया है
सवैया छंद का प्रभाव मारक क्षमता अन्य छंदों से सवाई अर्थात सवा गुनी होती है इसलिए संभवतः इसका नाम सवैया रखा गया है।
कुछ सवैया उदाहरणार्थ लिखे है ,जो आपके सामने है
1- #दुर्मिल (चंद्रकला) सवैया छंद
दुर्मिल सवैया में 24 वर्ण होते हैं, आठ सगणों (112) और 12, 12 वर्णों पर यति , अन्त सम तुकान्त ललितान्त्यानुप्रास होता है।
अब तो रहना सबको सँग में ,
हम भारत का जय गान करें |
रहती धरती यह पावन है ,
मुनि संत यहाँ सब ज्ञान भरें ||
शिव गंग यहाँ बहती शुभ है ,
सब संकट भी अभिमान टरें |
हरि बोल रहें हर सेवक के ,
हरि आकर भी सब हान हरें ||
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2- #सुंदरी (मल्ली/ सुखदानी )सवैया-
25 वर्ण. 8 सगण + गा
112 112 112. 112. 112 112. 112 112 2
अर्थात 112 X 8 +2
विशेष-, दुर्मिल (चंद्रकला) सवैया छंद (112 ×8 सगण )
में ” गा” जोड़ने पर सुंदरी सवैया बन जाता है)
जब साजन ने निरखी सजनी,
कहता यह तो रस- सी बहती है |
नथनी नग भी चमके दमके ,
हिलती झुमकी मन की कहती है ||
पग पायल के घुँघुरू बजते ,
सुर- ताल बराबर भी रहती है |
कटि झालर भी हिलती लटकी ,
कुछ भार रहे पर वो सहती है |
दूसरा उदाहरण
#सुंदरी सवैया- 25 वर्ण. 8 सगण (112) + गुरु (2)
जब साजन की सजनी घर में ,
गहना पहने तन को सजती है |
नथनी नग भी चमके दमके ,
हिलती झुमकी धुन से बजती है ||
पग पायल घायल है करती,
सुर- ताल बरावर भी मिलती है |
चलती वह है जब आँगन में,
शशि की छवि ही मुख पै खिलती है ||
सुभाष सिंघई
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3–#किशोर / सुख / कुन्दलता /कुन्तलता सवैया 26 वर्ण
(सगण 112 ) ललगा ×8 + दो लघु ( ग ग )
(विशेष सुंदरी (मल्ली/ सुखदानी )सवैया- में
25 वर्ण. 8 सगण( 112 ) + गा को ” ग ग ” करने पर किशोर सवैया बन जाता है )
जब साजन ने निरखी सजनी,
कहता यह तो रस- सी बहती अब |
नथनी नग भी चमके दमके ,
हिलती झुमकी मन की कहती अब ||
पग पायल के घुँघुरू बजते ,
सुर- ताल बराबर भी रहती अब |
कटि झालर भी हिलती लटकी ,
कुछ भार रहे पर वो सहती अब ||
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4–#महामंजीर सवैया-
26 वर्ण। आठ सगण + लघु गुरु
112 112 112 112 112 112 112 112 + 12
अथवा 112 X 8 + 12
सजनी मिलती जब साजन से ,
कहती तुम भी हमको छल भी गये |
विरहा रहती उजड़ा सब है ,
दहके जलते मन के बल भी गये ||
निरखो मुझको अब साजन भी,
अरमाँ मन के तन के ढल भी गये |
सविता मन की सब ही विसरा,
अपनेपन के सपने जल भी गये ||
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5-#अरविंद सवैया-
25 वर्ण. आठ सगण + एक लघु ।
112 112 112 112 112 112 112 112 + 1
अथवा 112 X 8 + 1
सब छूट गया परिवार यहाँ ,
अब क्या करना हमको उपकार |
जग में दिखती घनघोर घटा ,
चलती रहती कटुता तलवार ||
चमके बिजली गिरती घर में ,
छिड़ती दिखती सबको तकरार |
सुर ताल सभी अब रोकर के ,
सिसकें रहते सब है उस पार ||
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6–#मदिरा (मालिनी /उमा/ दिव्या )सवैया-
यह आकार में सबसे छोटा है। इसमें 22 वर्ण होते हैं। यह भगण की 7 आवृत्तियों के बाद एक गुरु जोड़ने से बनता है। सरलता से समझने के लिए इसकी वर्णिक मापनी को निम्नप्रकार लिखा जा सकता है-
211× 7 + गुरु
भारत में अब सैनिक चाहत ,
देश सदा पथ निर्मल हो |
कंटक काट करें अब रक्षण ,
चाल चली मत दुर्बल हो ||
देश रहे बस जाग रखें हम,
पावन गंग सदा जल हो |
सुंदर हो परिवेश यहाँ पर
शान रहे बस जो पल हो ||
7–मत्तगयंद सवैया
इसमें 23 वर्ण होते हैं। यह भगण की 7 आवृत्तियों के बाद दो गुरु जोड़ने से बनता है। सरलता से समझने के लिए इसकी वर्णिक मापनी को निम्नप्रकार लिखा जा सकता है-
211 211 211. 211 211. 211 211 22
संक्षेप में 211 X 7 + 22 भी लिख सकते हैं।
(विशेष मापनी से स्पष्ट है कि मदिरा सवैया के अंत में एक गुरु जोड़ने से मत्तगयंद बनता है अर्थात- मत्तगयंद = मदिरा + गा )
हे शिव शंकर सर्प रहें सिर ,
तुंग हिमालय आलय तेरा |
शीष झुकाकर चंदन अर्पण
लो चरणों पर वंदन मेरा ||
चाहत है अब गंग धुलें सब,
पाप तजें मन के अब डेरा |
पावन है शिवधाम गुनें हम ,
चाहत का रखते शुभ घेरा ||
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8–#चकोर सवैया-
23 वर्ण. 7 भगण और ल , मापनी-
211 211 211 211 211 211 211 21
( विशेष -मदिरा सवैया में + लघु करने पर =चकोर सवैया बन जाता है )
भारत में अब है यह चाहत ,
देश रखे अब निर्मल राह |
कंटक काट करें सब रक्षण ,
चाल चलें शुचि पाकर चाह ||
देव भजें हम जाग रखें सब,
पावन गंग रखे कुछ थाह |
सुंदर हो परिवेश यहाँ पर ,
दूर रहे मन की सब दाह ||
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9– #किरीट सवैया- 24 वर्ण , आठ भगण
211 211 211. 211 211 211 211 211
अथवा 211 X 8
दो प्रभु दान दया मुझको अब,
सेवक माँगत शीष नवाकर |
चाहत है बस दान दया शुभ ,
पास रहे नित मंगल आकर ||
है विनती मम एक सुनो शिव ,
दास कहे यह नाथ सुनाकर |
दो वरदान सदा रह सेवक ,
सेव करूँ बस माथ झुकाकर ||
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10 – #अरसात सवैया-
24 वर्ण. 7 भगण + गालगा
211 211 211 211., 211 211. 211
अथवा 211 X 7 + 212,
चाहत है अरदास करूँ अब ,
वैभव की सब चाहत छोड़ दी |
पूजन ही प्रभु पावन पाकर ,
हर्ष धरोहर ही शुभ जोड़ दी ||
बोल सुनें हम प्रेम भरे रस ,
पाप भरी तब गागर फोड़ दी |
शीष झुकाकर चेतन पाकर ,
गेह शिवालय को शुभ मोड़ दी ||
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11 #सुमुखी (मानिनी , मल्लिका) सवैया-
23 वर्ण. 7 जगण + लगा
121. 121 121 121 121 121 121. 12
अथवा 121 X 7 + 12,
पुकार दुखी जन देख “सुभाष,”
वहाँ कुछ काम सुधार करो |
सुगान रहे मन ज्ञान सुजान ,
विवेक यथा उपकार करो ||
अनेक जहाँ उपकार सनेह ,
वहाँ मत मान निहार करो |
महेश कहें सुन जीव अनादि ,
गणेश बनो उपचार करो ||
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12—#वाम / मंजरी / मकरंद /माधवी सवैया 24वर्ण
121 सात जगण + एक यगण लगाल ×7 + लगागा
(विशेष सुमुखी(मानिनी/मल्लिका) सवैया में एक और ” गा “जोड़ने पर माधवी सवैया हो जाता है )
पुकार दुखी जन देख सुभाष,
वहाँ कुछ काम सुधार करो जी |
सुगान रहे मन ज्ञान सुजान ,
विवेक यथा उपकार करो जी ||
अनेक जहाँ उपकार सनेह ,
वहाँ मत मान निहार करो जी |
महेश कहें सुन जीव अनादि ,
गणेश बनो उपचार करो जी ||
===================
13–#मुक्तहरा सवैया-
24 वर्ण। आठ जगण। मापनी-
121 121 121 121 121 121 121 121
अथवा 121 X 8
(विशेष – #सुमुखी (मानिनी , मल्लिका) सवैया- 7 जगण + लगा में एक ” ल” और जोड़ने पर , अर्थात पूरे 8 जगण करने पर , मुक्तहरा सवैया बन जाता है )
पुकार दुखी जन देख सुभाष,
वहाँ कुछ काम सुधार जरूर |
सुगेय मिले शुभ ज्ञान विवेक ,
वहाँ सब छोड़ गुमान कुसूर ||
अनेक जहाँ उपकार सनेह ,
वहाँ मत देख लकीर सुदूर |
महेश कहें सुन जीव अनादि,
गणेश बनो उपचार शूर ||
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14– #लवंगलता सवैया 25 वर्ण
121 जगण ×8 + एक लघु (ग)
(विशेष – मुक्तहरा सवैया- 24 वर्ण। आठ जगण। मापनी में एक लघु ” ग” जोड़ने पर लवंगलता सवैया बन जाता है )
पुकार दुखी जन देख सुभाष,
वहाँ कुछ काम सुधार करो अब |
सुगान रहे मन ज्ञान सुजान ,
विवेक यथा उपकार करो अब ||
अनेक जहाँ उपकार सनेह ,
वहाँ मत मान निहार करो अब |
महेश कहें सुन जीव अनादि ,
गणेश बनो उपचार करो अब ||
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15- #वागीश्वरी सवैया-
23 वर्ण. , सात यगण + लघु गुरु
122. 122 122 122. 122. 122 122 + 12
अथवा 122 X 7 + 12
बने काम पूरा- सही आपका ही ,
रहे गान पूरा -तभी शान है |
चलेगें जहाँ भी -मिलेगा उजाला ,
दिखे हाल पूरा – सही ज्ञान है ||
पताका रहेगी- सुखारी करों में ,
जमाना झुकेगा – जहाँ आन है |
निभाती चलें जो – कही बात आली ,
जहाँ भी कहेगा – उगा भान है ||
====≠============[
16–#महाभुजंगप्रयात सवैया
24 वर्ण। सात यगण
122 122 122 122 122 122 122 122
अथवा 122 X 8
(विशेष- वागीश्वरी सवैया- सात यगण + लघु गुरु में एक गुरु और जोड़ दिया जाए , अर्थात पूरे आठ यगण हो जावें , तब महाभुजंगप्रयात सवैया बन जाता है )
कहे नारि देखो , यहां रैन सूनी ,
मुझें छोड़ रूठी , वहाँ सौत पाली |
बने आप मौनी, नही बात मानी ,
तजे साज मेरे, यहाँ की उजाली ||
सभी नैन आँसू, यहाँ सूख बोलें ,
बना बाग रोगी , दिखे हीन माली |
बिना बात खारा, हुआं नीर सारा ,
जलें लोग देखों , बनी रात काली ||
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17 -#गंगोदक (गंगाधर /लक्ष्मी/खंजन )सवैया-
24 वर्ण। आठ रगण। मापनी-
212 212. 2 12 212 212. 212 212 212
अथवा 212 X 8
बोलते बोल जो सोचिए आप ही ,
बात में धीरता क्या वहाँ पास है |
नूर जो देखते , आपका ही दिखे ,
प्रीति की डोर भी , क्या वहाँ खास है ||
यातना वेदना भी रही दूर क्या ,
धर्म का क्या रखा , आपने वास है |
जानिए आप ही , भाव भी सोचिए ,
देखिए आप ही ,कौन-सा रास है ||
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18 -#मंदारमाला सवैया-
22 वर्ण। सात तगण +गुरु अथवा 221 X 7 + 2
221. 221 221 221. 221 221. 221 +2
गंगा तजे धाम -आया नया नाम
भागीरथी धार -पूरी रही |
रोकें महादेव -जूटा रखे खोल ,
देखें उसे शीष -नूरी रही ||
भागीरथी बोल -सोचो जरा देव,
संसार से पूर्ण -दूरी रही |
छोड़ो इसे भूमि- दीजे हमें आप ,
जानो मुझे ये जरूरी रही ||
========================
19–#सर्वगामी (अग्र) सवैया-
23 वर्ण। सात तगण +गुरु गुरु अथवा 221 X 7 + 2 2
221. 221 221 221. 221 221. 221 +22
(,विशेष- मंदार माला सवैया में एक और “गा” जोडने पर सर्वगामी सवैया बन जाता है ,)
गंगा तजी धाम -आया नया नाम
भागीरथी धार- पूरी रही है |
रोकें महादेव – जूटा रखे खोल ,
देखे उसे शीष -नूरी रही है ||
भागीरथी बोल -सोचो जरा देव,
संसार से पूर्ण – दूरी रही है |
छोड़ो इसे भूमि- दीजे हमें आप ,
जानो मुझे ये जरूरी रही है ||
=========
20- #आभार सवैया-
24 वर्ण। आठ तगण अथवा 221 X 8
221. 221 221 221. 221 221. 221 221
(विशेष- मंदार माला सवैया के अंत में एक “गाल ” जोडने पर एवं सर्वगामी सवैया में एक ” ल ” अंत में जोड़ने से आभार सवैया बन जाता है , अर्थात तगण आठ (221 ×8 )हो जाते है )
गंगा तजी धाम -आया नया नाम
भागीरथी धार पूरी रही लेख |
रोकें महादेव- जूटा रखे खोल ,
देखे उसे शीष -नूरी रही लेख ||
भागीरथी बोल -सोचो जरा देव,
संसार से पूर्ण -दूरी रही लेख |
छोड़ो इसे भूमि- दीजे हमें आप ,
जानो मुझे ये जरूरी रही लेख ||
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सभी उपरोक्त सवैया , स्वरचित मौलिक है ,
©®सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंदों को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर