सरज़मीन-ए-हिन्द पे नापाक कोई है
प्रारम्भिक बोल
ये हिन्द की जमीं है यहाँ नहीं वीरों की कमी है
मौत से हर- रोज हम खेलते यहां काहे ग़मी है
यहाँ दिल की जमीं -जमीं जहां संवेदना जगती
एक -दूजे के दुःख-दर्द से बस आंखों में नमी है।।
ना पाक कर पायेगा ना- पाक इरादे पूरा
हमसे टकराएगा तो हो जाएगा चूरा-पूरा
घर में छुपा रखे अपने उसने भेदिये हमारे
बस खेद है इतना वो भेद- भेड़िये हैं हमारे
दौलत के पीछे जिंदा इंसान को किए मुर्दा
ना ख़ौफ -ख़ुदा इनको करते हैं ज़ुदा- इंसां
ये कैसा ख़ुदा है ये कैसी खुदाई अपनों से जुदाई
अपनों से जुदाई वाह तेरी ख़ुदाई अपनों से जुदाई
नापाक है कोई वो हिन्दू या मुसलमां
जुल्मों-सितम करता इंसां है दुखदाई
ये मुल्क है अपना ना धर्म से बांटो
इंसान हैं हमसब इंसां को ना बांटो
सरज़मीन-ए-हिन्द पे नापाक कोई है
वो हिन्दू या मुसलमां नापाक सोई है
है पाक की क्या औकात वो बद्जात है
जात-पांत-धर्म- नाम से बंटता समाज है
यहां भितरघात करता अपना ही कोई है
उसका कोई जाति-धर्म ना सुकर्म कोई है
छलता हमको वो ही जलता पलपल वो ही
ना ओर कोई है वो ही अपना ही है सो-ही
सरज़मीन-ए-हिन्द पे नापाक कोई है
वो हिन्दू या मुसलमां नापाक सोई है
अभिनन्दन है उनका जां देश हित खोई
वो हिन्दू हो, हो चाहे मुसलमां कोई-कोई
अभिनंदन अभिनन्दन अभिनन्दन है
भारत माता के सच्चे सपूत है वो ही।।
सरज़मीन-ए-हिन्द पे नापाक कोई है
वो हिन्दू या मुसलमां नापाक सोई है।।
मधुप बैरागी