सर्दी के हैं ये कुछ महीने
सर्दी के हैं ये कुछ महीने
कस्तूरी की खुश्बू , मेरे साथ होती है
पूछते हैं कुछ लोग, कुछ अटकलों में
रहते हैं उलझे- उलझे
उन्हें क्या पता है वो ना हो के भी
मेरे पास होती है मेरे साथ होती हैं
सर्दियां जब भी शुरू होती हैं
इंतज़ार के वो कुछ महीने
गर्मी का अभिशाप तोड़ कर
बंद पड़ी बक्से से बाहर निकल
वो ऊनी मफलर
झट से गले से लिपट जाती है
………. अतुल “कृष्ण”