सरहद पे सिपाही को होता है शायद अनहोनी का पूर्वाभास
सरहद पे सिपाही को होता है शायद अनहोनी का पूर्वाभास
तभी तो लिखा ये खत उसने अपने कुछ यारों को खास
यारों मेरी शहादत की खबर देने का कुछ अलग रखना अन्दाज
मेरी बूढ़ी माँ की आँखें पथरा गयी होंगी मेरे इन्तजार में
कहना उसे हे माँ तेरा सुत कर्मक्षेत्र मे सफल हुआ है आज
यूं तो मेरे पिता भी फौजी थे, पर पितृत्व तो है उनमें भी खास
कहना उनसे पुत्र ने पहनाया है उन्हें “शहीद के पिता “का ताज
मेरा छोटा भाई भी सरहद पर आना था चाहता
कहना उसे इस सपने को रखे जीवंत अपने साथ
बहन से वादा किया था, भैयादूज पर आने का
कहना मुझे तिलक करे वो मातृभूमि की रज से आज
घर पर नवविवाहिता है मेरी, लिए रचे मेंहदी के हाथ
कहना उससे क्षमा। करें मुझे,नहीं निभा सका जीवन भर का साथ
मेरे मरने का मातम ना करना यारो तुम भी
करना विदा मुझे “जय हिन्द “के घोष के साथ
डॉ. कामिनी खुराना (एम.एस., ऑब्स एंड गायनी)