सरस्वती वन्दना, दोहे
हे माँ वीणा वादिनी, रहती हंस सवार।
करूँ जोड़ कर वन्दना, करो मातु स्वीकार।।१
धवल वसन माँ धारिणी, विनती बारंबार।
नवल शब्द नव भाव दे, बढ़े कलम की धार।।२
पुस्तक वीणा कर कमल, शोभित है गल माल।
स्वर्ण मुकुट है शीश पर, चमके बिंदी भाल।।३
मैं मूरख मतिमंद माँ, तुम गुण की भण्डार।
कृपा करो माँ भारती, दे दो ज्ञान अपार।।४
जग जननी जय शारदे, कर दो पूरी आस।
सरस्वती रखले मुझे, निज चरणों के पास।।५
हंसवाहिनी ज्ञानदा, करो कष्ट मम दूर।
सुख समृद्धि वैभव मिले, हों निधियां भरपूर।।६
हे वाणी वरदायिनी, माँगू हाँथ पसार।
रमा रहूँ साहित्य में, कर दो काव्य निखार।।७
माँ वरदा वरदायिनी, कर पापों का नाश।
माँ अपने इस दास के, करो ह्रदय में वास।।८
विनय करूँ कर जोड़कर, सुनले मातु पुकार।
भटक रहा हूँ शून्य में, भव से कर दो पार।।९
सकल मनोरथ पूर्ण हो, करूँ शारदे ध्यान।
दो अदम्य साहस मुझे, तमस हरो दो ज्ञान।।१०
ब्रम्हप्रिया माँ शारदे, विदुषी वेद प्रचार।
नवल भाव उर में भरो, दे दो शुद्ध विचार।।११
माँ का सुमिरन जो करे, और करे गुणगान।
पापों से मुक्ती मिले, मातु भरे उर ज्ञान।।१२
यश वैभव देती सदा, करती बुद्धि विकास।
तेरे दर्शन मात्र से, पूरी हो हर आस।।१३
हरो दास का कष्ट माँ, करूँ आपका ध्यान।
भोग तेरा माता लगे, सदा शहद अरु पान।।१४
तपस्विनी है आचरण, अजब निराली शान।
ब्रम्हचारिणी से सदा, मिलता सबको ज्ञान।।१५
मौलिक एवं स्वरचित
अभिनव मिश्र ‘अदम्य’
शाहजहाँपुर, उ.प्र.