सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना
हे विद्या की देवि, शारदे माता वाणी।
शरण पड़े हम देवि,कृपा कर वीणापाणी।
कर दो कृपा कटाक्ष,मातु तुम हमें उठाओ,
बरसाओ तुम नेह, गले से हमें लगाओ।
तुम जिव्हा पर उतर, बनो, मधु-वाणी दाता।
करो कंठ में वास,मधुर स्वर दे दो माता।
मन,मस्तक और चित्त, सभी के तम तुम हर लो।
लघु किंकर मम मान, शरण में हमको धर लो।
कर दो झंकृत तार,हमारे हृदय तंत्र के।
हम सम्मोहित हुए, आपके मधुर मंत्र के।
मूक जगत को मिला, आपसे ही वाणी वर।
हुए सभी कृतकृत्य, आपसे पा ऐसा वर।
इंदु पाराशर