सरस्वती वंदना
जय सरस्वती जगजननि बल बुधि विद्याखानि।
गौरव ज्ञान प्रदान कर बुद्धिहीन सुत जानि।।
हे बुद्धिनिधी! हे ज्ञाननिधी!
हे विद्यादायिनी सरस्वती!
दे सुमति मुझे वीणापाणी
माँ पूजूँ तुमको मैं कुमती।
तेरी पूजा कर जगजननी
गरिमा पाते हैं भक्त सभी।
लहराती उनकी कीर्ति ध्वजा
दुख का न उन्हें संत्रास कभी।
हे हंसवाहिनी! विमल बुद्धि
भण्डार लुटा देना मुझको।
वासना विषय छल लोभ दम्भ
से रहित सदा रखना मुझको।
मोह कपट पाखंड झूँठ
हरना मुझसे अतुलित शक्ती!
दे सुमति मुझे वीणापाणी
माँ पूजूँ तुमको मैं कुमती।।
जब जब भक्तों पर पीर पड़े
वे शरण तुम्हारी आते हैं।
अज्ञान अंधेरा मिटता है
सब क्लेशरहित हो जाते हैं।
ब्रह्मा जी शिवजी और हरी
महिमा गाते हैं सब तेरी।
हे दुखभंजन! हे सुखदाती!
माँ एक अरज सुन ले मेरी।
माँ ! अहं अविद्या नष्ट करो
देकर मुझको अपनी भक्ती।
दे सुमति मुझे वीणापाणी
माँ पूजूँ तुमको मैं कुमती।
संजय नारायण