“सरस्वती बंदना”
तम हर मन का मेरे,ज्योति मय जीवन कर दे।
वर दे वीणा वादिनि, झंकार मय स्वर कर दे।।
शब्दों का प्रसार पावन लय, छंद कविता में भर दे।
सहज सार हो वाणी में, नित प्रेम सुधा बरसे ।।
बोध की धारा हो प्रवाह, जीवन में नित्य सभी के।
अज्ञान मुक्त कर तप साध की,तन का विकार हर लें।।
संताप मिटे तन का,साहस,बल,विवेक,विद्या वार दे।
भय मुक्त हो जन मानस,नव ऊर्जा का संचार दे।।
अभिमान मिटे जग से, कुरीतियों का संहार लें।
ज्ञान की देवी हे मैया,शत् बार प्रणाम स्वीकार लें।।
बुला रहा करबद्ध तुम्हें मां,अब आसन यहीं लगा लो।
लेकर वीणा की मधुरिम ध्वनि, मन मंदिर में मेरे पधारो।।
वर्षा (एक काव्य संग्रह)-राकेश चौरसिया