सरसी छंद
बस यूँ ही (सरसी छंद)
सबको खुशियां देते देते, भूले अपना ध्यान।
यूं ही सारा जीवन निकला , नहीं हुआ कुछ ज्ञान।।
पुल तारीफों के बांधे सबने, काम लिया भरपूर।
कोन जहां में तुमसे अच्छा, अखियों का हो नूर ।।
इसी तरह है मन बहलाये, उलझे हम नादान।
यूं ही सारा जीवन निकला, नहीं हुआ कुछ ज्ञान।।
कर चालाकी मूर्ख बनाते, शर्म लाज को छोड़।
अपनेपन का शोर मचाते, पैसे की बस होड़।।
नहीं फ़र्क़ है इनको पड़ता, निकले चाहे प्राण ।
यूं ही सारा जीवन निकला , नहीं हुआ कुछ ज्ञान।।
कर्मो का है लेखा जोखा, सब कुछ करना सोच ।
नियत साफ है जिसकी रहती, दुख की नहीं खरोंच।।
मस्ती से है हम इतराते, सुख का करते पान।
यूं ही सारा जीवन निकला , नहीं हुआ कुछ ज्ञान।।
अंधे गूंगे बहरे बनना, रिश्तों में गर प्यार।
संबंधों की कीमत जानो,जाओ दिल को हार।।
कपटी अंतस मत तुम रखना, कहते हैं भगवान।
यूं ही सारा जीवन निकला , नहीं हुआ कुछ ज्ञान।।
सीमा शर्मा