सरसी छंद
सरसी छंद16/11
दिल है घायल रहता जाने,छिनता है सूकून
इक प्याला है मेरी आत्मा, निचड़ा इसमें खून।
लोग दर्द ही देते रहते, हैं लगाते घाव।
दिए जख्म हैं लाखों मुझको, होता लहू रिसाव ।।
कभी कभी है दरके प्याला, मुश्किल हों दो जून।
इक प्याला है मेरी आत्मा, निचड़ा इसमें खून।
टूटे जुड़े हैं मन का शीशा, लगते सौ पैबंद।
खुश है रहना सब है सहना, माना बस आनंद।।
लोग बाग हैं फिर भी छिड़कें,जख्मों ऊपर नून।
इक प्याला है मेरी आत्मा, निचड़ा इसमें खून।
मतलब साधे हैं जो अपने, मीठे मीठे बोल।
बाण चलाए मुख से ऐसे,मनवा जाए डोल।।
काँटो में रह कर भी तुम, खिलना सुभग प्रसून ।
इक प्याला है मेरी आत्मा, निचड़ा इसमें खून।
सीमा शर्मा