सरसी छंद
सरसी छंद
सजना के हैं नयन कटीले
भोले भाले ये दो नयना, देते गहरी पीर।
सजना के हैं नयन कटीले, उर में लगते तीर।
नजरें उनकी मुझे बुलाती, बढ़ती प्रेम की प्यास।
धड़कन मेरी शोर मचाये, जाऊँ उनके पास।।
अपलक मैं उन्हें निहारूँ, बनी हुई तस्वीर।
सजना के हैं नयन कटीले, उर में लगते तीर।
नेह मेह है बरसे ऐसे,ज्यूँ बरसे बरसात।
चोरी चोरी उनको देखूं, सिहरे सारा गात।।
नज़रों से वो ओझल होते, , होता हृदय अधीर।
सजना के हैं नयन कटीले, उर में लगते तीर।।
रंग प्रेम का पक्का लगता, फीके बाकी रंग।
स्पर्श जरा सा पाकर मेरा, पुलकित होता अंग।।
बातें मीठी मन को भायें, जैसे शीत समीर ।
सजना के हैं नयन कटीले, उर में लगते तीर।।
साजन की खुशबू से महके,मेरी अपनी श्वास।
गीत प्रेम के गाती रहती,होते साजन पास ।।
उसमें ही बहती रहती,नदिया वो मैं नीर।।
सजना के हैं नयन कटीले, उर में लगते तीर।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’