सरसी छंद और विधाएं
#सरसीछंद~
इसे तीन अन्य नामों से भी जाना जाता है।
#हरिपद छंद /#सुमंदर छंद/#कबीर छंद
किंतु प्रचलित नाम सरसी छंद है {( सरसी का शाब्दिक अर्थ होता है ,- जलाशय जो छंद के गुणानुरुप नाम है )
इस छंद का, अष्ट छाप के कवियों में सूरदास जी नंददास जी ने , व तुलसीदास जी मीराबाई जी ने अपने कई पद काव्यों में बहुत प्रयोग किया है , जिससे इसे भिखारीदास जी ने हरिपद (भगवान की स्तुति करने वाला ) #हरिपद छंद कहा है }।
होली के दिनों में गाया जानेवाला कबीर भी इसी छंद में गाया जाता है। जिसके अंत में #जोगीरा #सा #रा #रा #रा, लगाया जाता है, इसीलिए इसे #कबीर छंद नाम भी मिला है
इस छंद में कथ्य भाव सागर की गहराई सा पाया गया है, इस लिए इसे समंदर / #सुमंदर छंद नाम भी मिला है ।
सरसी छंद
छंद जानिए प्यारा सरसी , सोलह-ग्यारह भार |
कहे सुमंदर हरिपद कबिरा, चार नाम उपहार ||
विषम चरण है चौपाई सा, सम दोहा का मान |
चार चरण में इसको जानो, यह सुभाष संज्ञान ||
#चौपाई का एक चरण (नियम सहित ) + #दोहे का सम चरण (नियम सहित ) = #सरसी छंद……..
सरसी छंद में चार चरण और 2 पद होते हैं । इसके विषम चरणों में 16-16 मात्राएं ( चौपाई चाल में ) और सम चरणों में 11-11 मात्राएं होती हैं ।( दोहे के सम चरण की तरह ) । इस प्रकार #सरसी छंद में 27 मात्राओं के 2 पद होते हैं । मूल छंद की दो दो पंक्तियांँ अथवा चारों पंक्तियांँ सम तुकान्त होती हैं।
१६ मात्राओं की यति २२ या ११२ या , २११ या ११११.से अधिमान्य होती है ।
#तगण (२२१), #रगण (२१२), #जगण ( १२१) #वर्जित हैं
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आप इस छंद में छ: विधाएं लिख सकते हैं।
1- मूल छंद
2- मुक्तक
3- कबिरा जोगीरा
4- गीत
5 – गीतिका
6 – पद काव्य
चार चरण और दो पद में सरसी छंद
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कपटी करते मीठी बातें , खूब दिखाते प्यार |
हित अनहित को नहीं विचारें , करें पीठ पर बार ||
बने शिकारी दाना डालें , पीछे करें शिकार |
सज्जन को यह घाती बनते , सबको देते खार ||
अब यही छंद. मुक्तक में
कपटी करते मीठी बातें , खूब दिखाते प्यार |
हित अनहित को नहीं विचारें , करें पीठ पर बार ||
बने शिकारी दाना डालें , पीछे देते मात –
सज्जन को यह घाती बनते , सबको देते खार ||
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सरसी छंद (कबिरा जोगीरा )
मिला फैसला, देकर लाखों, अफसर बड़ा महान |
सौ रुपया ले फाइल खोजी , बाबू बेईमान ||
जोगीरा सा रा रा रा
एक फीट की गहराई में , शौचालय निर्माण |
जाँच कमेटी माप गई है, मीटर आठ प्रमाण ||
जोगीरा सा रा रा रा
कर्ज मिले जब भी सरकारी, समझो तुम बादाम |
नेता देते माफी भैया, जब चुनाव हो आम ||
जोगीरा सा रा रा रा
ओढ़ रजाई घी पी लेना , अवसर. अच्छा जान |
इसी तरह यह भारत.चलता , नेता देते दान ||
जोगीरा सा रा रा रा
नहीं खोजने जाना तुमको , मिल जाएँगे लोग |
एक बुलाओ दस आएँगे , पालो चमचा रोग ||,
जोगीरा सा रा रा रा
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सरसी छंद में हिंदी गीत (कम से कम तीन और अधिकतम चार अंतरा )
समाधान भी खोज निकाले , कहलाता है धीर |{मुखड़ा)
संकट जब-जब भी आता है , खुद निपटाता वीर |(टेक)
हँसी उड़ाते पर पीड़ा में , जो भी मेरे यार | (अंतरा )
रोते हैं वह बैठ सदा ही , खुद पर जब तलवार ||
लोग साथ से हट जाते हैं , मिलती उसको हार |
जिसने बांँटे दोनों हाथों , सबको हरदम खार ||
इसीलिए तो सज्जन कहते , रखो दया का नीर |(पूरक)
संकट जब- जब भी आता है , खुद निपटाता वीर || (टेक)
अपनी-अपनी ढपली बजती , अपना-अपना राग (अंतरा)
अवसर पाकर देते है बस , बदनामी के दाग ||
लोकतंत्र में गजब तमाशा , जुड़ जाते हैं काग |
खूब फेंकते बिषधर बनकर, दूर- दूर तक झाग ||
सदा अंँगूठा दिखलाकर ही , खल खाते हैं खीर |(पूरक)
संकट जब-जब भी आता है , खुद निपटाता वीर ||(टेक)
खल करते संदेश प्रसारित,लोग न देते ध्यान (अंतरा)
यहाँ सनातन से देखा है ,सबका हुआ निदान ||
लोग साथ भी दे़ देते हैं , रखते ऊँची शान |
अपनाकर सद्भाव सदा ही, करते हैं उत्थान ||
धैर्य वान की कीमत होती , जैसे पन्ना हीर |(पूरक)
संकट जब -जब भी आते हैं , खुद
निपटाता वीर (टेक )|~`~~~~~~~~~~~~~~
सरसी छंद अपदांत गीतिका समांत-आन,
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फितरत, नफरत की ईंटों से , पूरा बना मकान ,
लेकर झंडा शोर मचाते, यह है आलीशान |
नहीं बात में कुछ रस रहता , बातेंं रहतीं फेक ,
तानसेन के पिता बने हैं , उल्टा सीधा गान |
खड़े मंच. पर नेता जी हैं , भाषण लच्छेदार ,
ताली चमचे पीट रहे हैं , वाह-वाह की तान |
छिन्न-भिन्न सब करते रहते , फिर भी हैं उस्ताद ,
फिर भी अपनी गलती पर वह, कभी न देते ध्यान |
सच “सुभाष” ने जब बोला है , रुष्ट हुए हैं लोग ,
दूजों को मूरख बतलाते , खुद बनते श्रीमान |
नहीं सृजन में हाथ रहा है , नहीं मनन में खोज ,
मीन – मेख के महारथी हैं, बांँट रहे हैं ज्ञान |
बने देवता हिंदी के हैं , समझ न आती बात ,
खतना करते हिंदी की जब , मुझे दर्द का भान |
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सरसी में पद काव्य
मैया ! मेरी रखियो आन |
द्वार खड़ा हूँ माता तेरे , करता हूँ गुणगान ||
भाव सहित है अर्चन वंदन ,चरणों में नित ध्यान |
संकट कटते तेरी शरणा , मिले कृपा का दान ||
मंगल मूरत मेरी मैया , जग की दया निधान |
शरण सुभाषा पूजा करता , मैया की अब शान ||
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सुभाष सिंघई ( एम•ए• हिंदी साहित्य, दर्शन शास्त्र)
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंद को समझाने का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष , समांत पदांत दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें!!