सरसी छंद आधारित गीत
#विधा ? गीत (सरसी छंद आधारित)
#रचना: ?
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#मुखड़ा
पहने चोला अंधभक्ति का, अंधा हुआ जहान।
धर्म कहे क्या समझ न पाते, मुश्किल में इंसान।।
#अंतरा
फैला है आडम्बर जग में, दिशा दिशा चहुंओर।
कोउ न जाने होगा कैसे, आज चतुर्दिक भोर।।
भेष बदल कर पाखंडी अब, बनते सन्त महान।
धर्म कहे क्या समझ न पाते, मुश्किल में इंसान।।१।।
अंधभक्ति में जीता हरपल, माने वह आधार।
लाभ उठाते पाखंडी हैं, अंधो की सरकार।।
कपट द्वेष छल की धनुहीं पर, करे वाण संधान।
धर्म कहे क्या समझ न पाते, मुश्किल में इंसान।।२।।
डगर कठिन अब है पनघट की, किसे सुनाऊँ आज।
आडम्बर में फँसे हुये सब, बजे पखावज साज।।
धर्म धरातल में धस जाये, नहीं किसी को भान।
धर्म कहे क्या समझ न पाते, मुश्किल में इंसान।।३।।
धर्मज्ञान का पाठ पढाते, अज्ञानी नादान।
अंधभक्ति के वश में होकर, दिखे सभी अंजान।।
चोर लुटेरे अरु पाखंडी, सभी बने धनवान।
धर्म कहे क्या समझ न पाते, मुश्किल में इंसान।।४।।
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पूर्णतः स्वरचित, स्वप्रमाणित व अप्रकाशित
रचनाकार का पूरा नाम : पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
शहर का नाम : मुसहरवा (मंशानगर) पश्चिमी चम्पारण
बिहार