सरल के दोहे
गिरे पड़े पी के चले, होके मस्त मलंग।
ऊपर नीचे झूलकर, उड़ती रही पतंग।।
खुद को खुद कहते गए, खुद से शुद्ध विशुद्ध।
खुद ही खुद होते गए, खुद से खुद के बुद्ध।।
या
खुद ही खुद कहने लगे, खुद को शुद्ध विशुद्ध।
खुद ही खुद से हो गए, खुद ही खुद के बुद्ध।।
करभ दोहा
(16 गुरु)
मजा मिल गया बोलते, उलटे सीधे लोग।
अंडा मछली खा रहे, रोज लगाकर भोग।।
मजा चखाना आज की, जनता को दरकार।
मजा चखाने के लिये, बैठी है सरकार।।
नौका डगमग डोलती, हिचकोले भरमार।
सोचो समझो जानलो, कैसे होगा प्यार।।1
नौका हे भगवान जी, कर देना उस पार।
भवसागर से ही हमें, पल में देना तार।।2
गिरे नजर से जो अगर, दिल से होते दूर।
जैसे शीशा टूटकर, होता चकनाचूर।।
आगे बढ़ने को करो, जान लगाकर कार्य।
ललक पिपासा लालसा, जीवन में अनिवार्य।।
कविता में आने लगे, जोरदार जब पंच।
मंचों के सरताज तुम, बन जाओ सरपंच।।
जल बिनु मछली के लिए, जीना बने मुहाल।
बिना ललक के आपका, भी तस होगा हाल।।
करवट भी बदले नहीं, लेते नहीं डकार।
चोर लुटेरों ने सकल, लूट लिये बाजार।।
बिन बदले करवट करो, रात दिवस विश्राम।
लगातार आराम से, मिल जाएंगे राम।।
खाते होते खूब पर, लेते नहीं डकार।
ऐसे लोगों से रखो, दो गज दूरी यार।।
सोच समझकर ऊँट भी, करवट करता चेंज।
साजिश से भरपूर है, नालायक की रेज।।
अगर चाहते हो बनो, जग में नम्बर एक।
रहना तुमको फिर पड़े, प्रियवर हरदम नेक।।
सहज सरल सी बात हो, प्रेरक रहे प्रसंग।
सदा नाचते ही रहे, मन मतंग मलंग।।
पुरुषारथ करते रहो, छोड़छाड़ कर आस।
तभी बुझेगी आपकी, मंजिल वाली प्यास।।
नमस्कार स्वीकारिये, प्रथम हमारा काम।
हाथजोड़ करते निरत, वन्दन नमन प्रणाम।
नमस्कार हर बार गर, करते रहते यार।
करो हमारा अन्ततः, नमस्कार स्वीकार।।
नमस्कार से मानिये, चमत्कार श्रीमान।
दे लेने सम्मान से, पा लेते सम्मान।।
-साहेबलाल सरल बालाघाट म प्र
7000432167