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26 Jan 2017 · 2 min read

सरल की घनाक्षरी

1 समाचार की मनहरण

चित्र का चरित्र आज, लगता विचित्र आज
दर्द में भी मित्र आज, जोर की खबर है।

चाहे मरे कोई जिए, जीना चैनल के लिए
भेद करनी में किये, दौर की खबर है।।

सत्य जो बिलखता है, झूठ खूब छपता है
तथ्य कौन लिखता है, भोर की खबर है।।

आजकल समाचार, बन गया रोजगार
सारहीन भी विचार, गौर की खबर है।।

2  बातों की मनहरण

बातों से ही ज्ञान बढे
पंगू भी पहाड़ चढ़े
बातों से ही हल होता
बातों का सवाल है।।

तोलो मोलो फिर बोलो
जहर यूँ ही न घोलो
वरना कहर होगा
मचेगा बवाल है।

बातों से ही दम भी है
बातों से ही गम भी है
बातों में ही बम भी है
बातें ही कमाल है।।

भावना सुधारकर
मित्र फिर बातकर
चित्र न बिगाड़ गर
भारती का लाल है।।

3

माँ की मनहरण

जब माता बोलती है, मीठा रस घोलती है,
माँ की बोली जैसे मानों, प्रेम की ही बोली रे।
 
लाख हो तनाव पर, मन को आराम मिले,
माँ की लोरी बने तब, नींद की ही गोली रे।।

माँ है घर में अगर, घर लगता है घर,
रात तो दिवाली वाली, दिन में हैं होली रे।।

माँ है मेरी माँ है तेरी, माँ तो सभी की है माँ जी,
आरती उतारो माँ की, आओ मिल टोली रे।।

4 पानी की मनहरण

पानी में जहर घुला
पीना नहीं होगा भला
बार बार तुम छानो
छन्ना जालीदार से।।

पास रखो स्वच्छ पानी
पीने के लिये ही ज्ञानी
वरना बीमार पड़ो
पानी के प्रहार से।।

जोर का है संक्रमण
जांच की मशीन में भी
घटे नहीं बढ़ेगा ही
रोग उपचार से।।

पानी पानी मांगता है
बेपानी के लोगों से तो
कैसे पानी मांगोगे भी
ऐसे पानीदार से।।

5  बचपन की मनहरण

मिट्टी का ले खिलौना भी
गुड़ियों का बिछौना भी
बालपन की सोचते
कल्पना विचित्र है।।

झूठमूठ का ही खाना
खाने का भी था बहाना
दिन बचपन वाला
याद आता मित्र है।।

रेत का मकान देखो
स्वप्न का जहान देखो
खुद को महान देखो
चिंतन में चित्र है।

छेड़ तार आज दिया
मन में सुगन्ध किया
आज भी महकता है
इत्र वो पवित्र है।।

6 भूल की मनहरण

सुबह का भुला गर, चले आये शाम घर,
ऐसा कहे लोग उसे, भूला मत मानिये।।

भूल को सुधारो तुम, फिर से बिचारो तुम,
बार बार भूल को सुधार सच जानिए।।

जानके करेगा भूल, मिलेगा उसी को शूल,
भूल को भुलाने वाली, तार को ही तानिये।।

जीवन के पानी में भूल वाली धूल हो तो,
भूल वाली धूल को ही बार बार छानिये।।

7  जातिगत मनहरण

जातिगत भेदभाव, कारण है अलगाव,
जातिवादियों का नहीं, मान होना चाहिये।।

स्वार्थ साधने के लिये, जातियां बनाई गई,
और कहा जाति पे, गुमान होना चाहिये।।

मानव को मानव ही, सिर्फ बोला जाए अब,
मानवता मानव की, शान होना चाहिये।।

इसी बात के ही लिये, मेरी तो लड़ाई है कि
एकता हमारी पहचान होना चाहिये।।

-साहेबलाल ‘सरल’

Language: Hindi
495 Views
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