” सरकारें सांसत में ” !!
कृषकों ने हड़ताल करी है ,
सबके सब आफत में !!
सब्जी भाजी घूरे होगी ,
दूध ढुले सड़कों पर !
सुविधाएं अधिकार बने गर ,
सभी चढ़े पलकों पर !
कर्ज़ माफी अब यक्ष प्रश्न है ,
सरकारें सांसत में !!
वैज्ञानिक आधार नहीं अब ,
मूल्यांकन अपना है !
छूट मिले उतनी कम लगती ,
सत्ता को ठगना है !
टेक्स , ब्याज से सरोकार ना ,
वोट मिले राहत में !!
है किसानों में नेता उपजे ,
भामाशाह कई हैं !
आमजनों का हित ना चाहें ,
उनकी चाह नई है !
समृद्धि का दौर चला पड़ा ,
बहुतेरे शामत में !!
बाँहें चढ़ा प्रतिपक्ष खड़ा है ,
अपना खेला खेले !
अपना हित साधे चुप्पी से ,
दूजों को है ठेले !
मंहगाई , आक्रोश बढ़े यों ,
लगे हुए चाहत में !!
धरतीपुत्र बने व्यवसायी ,
जनता का क्या होगा !
पालक ही पोषण को छोड़े ,
पालित का क्या होगा !
बदले नहीं अन्नदाता मन ,
है दौड़ अकारथ में !!
बृज व्यास