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1 Jun 2018 · 1 min read

” सरकारें सांसत में ” !!

कृषकों ने हड़ताल करी है ,
सबके सब आफत में !!

सब्जी भाजी घूरे होगी ,
दूध ढुले सड़कों पर !
सुविधाएं अधिकार बने गर ,
सभी चढ़े पलकों पर !
कर्ज़ माफी अब यक्ष प्रश्न है ,
सरकारें सांसत में !!

वैज्ञानिक आधार नहीं अब ,
मूल्यांकन अपना है !
छूट मिले उतनी कम लगती ,
सत्ता को ठगना है !
टेक्स , ब्याज से सरोकार ना ,
वोट मिले राहत में !!

है किसानों में नेता उपजे ,
भामाशाह कई हैं !
आमजनों का हित ना चाहें ,
उनकी चाह नई है !
समृद्धि का दौर चला पड़ा ,
बहुतेरे शामत में !!

बाँहें चढ़ा प्रतिपक्ष खड़ा है ,
अपना खेला खेले !
अपना हित साधे चुप्पी से ,
दूजों को है ठेले !
मंहगाई , आक्रोश बढ़े यों ,
लगे हुए चाहत में !!

धरतीपुत्र बने व्यवसायी ,
जनता का क्या होगा !
पालक ही पोषण को छोड़े ,
पालित का क्या होगा !
बदले नहीं अन्नदाता मन ,
है दौड़ अकारथ में !!

बृज व्यास

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 241 Views
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