सरकारी दफ्तर में भाग (7)
आविद के कहने पर संजीव, आविद के साथ उस मुख्य द्वार से आगे की ओर बढ़ा तो द्वार के भीतर घुसते ही दाहिनी ओर एक शिलान्यास जैसा पत्थर लगा था जिसमें संजीव के दादा, परदाद, ताऊ, पिता के नाम के साथ-साथ उस राजमहल से जुड़ी कई जानकारी लिखी थी। इन्टरव्यू के लिए आये बहुत से अभ्यर्थी उस देखकर वहाँ रूककर वो इतिहास पढ़ रहे थे, जो संजीव के दृष्टि पटल पर पहले से ही अंकित था। संजीव भी उस शिलान्यास पत्थर को देखकर रूक गया और उस शिलान्यास पत्थर पर अपने दादा, परदाद, ताऊ, पिता के नाम पढ़कर उसके मन की बेचैनी कुछ कम हुयी और उसे इस बात की खुशी हुयी की कि उसके अस्तित्व के निशान अब तक जीवित हैं भले ही संक्षिप्त इतिहास के रूप मे। संजीव को देखकर आविद भी उस पत्थर को पढ़ने लगा और पढ़ते-पढ़ते संजीव को उसके ही अस्तित्व के बारे में बताने लगा, लेकिन संजीव कुछ नहीं बोला बस शान्त खड़ा-खड़ा आविद की हर बात सुनता रहा। क्योकि वह जानता था कि वह आज किसी राज्य का राजकुमार बनकर नहीं, बल्कि एक याचक बनकर आया है एक सरकारी नौकरी के लिए उस सरकारी दफ्तर में।
कुछ देर बाद दफ्तर के नोटिस बोर्ड पर साक्षात्कार के लिये आये सभी अभ्यर्थियों के नामों की सूची चसपा हो चुकी थी। एक चपरासी जो अभ्यर्थियों के नामों की सूची चसपा कर रहा था कह रहा था, जितने भी लोग इन्टरव्यू के लिए आये है, वे सब अपने प्रमाण पत्रों के साथ तैयार हो जाये, इन्टरव्यू 11ः00 बजे शुरू होगा। और सभी नोटिस बोर्ड पर अपना-2 नाम देख लो। इसी क्रम में सभी का इन्टरव्यू होगा। तभी आविद ने संजीव से कहा, ‘‘अरे ! संजीव भाईजान आप फिर किसी के ख्यालों में खो गये, जनाब आगे चलिए जिस काम के लिए आये है उस काम का वक्त आ गया।’’ आविद के कहने पर संजीव अपने अस्तित्व के उस संसार को भुलाकर फिर वर्तमान में लौट आया और हल्की सी मुस्कान के साथ आविद से बोला, ‘‘कुछ नही भाई बस ऐसे ही।’’ संजीव और आविद आगे बढ़े, और दोनों नोटिस बोर्ड के पास आ गये। दोनो ने नोटिस बोर्ड पर चसपा की गई उस सूची को देखा, जिसमें अंकों की मेरिट के हिसाब से अभ्यर्थियों के नामों की सूची बनायी गई थी। जिसके अनुसार प्रारम्भ से तीसरा नाम संजीव का था और अन्त से चैथा नाम यानि सैतालिसवाँ आविद का था। लेकिन इसके बावजूद भी आविद को पूर्णतः विस्वास था कि आज उसका चयन हो जायेगा।
घड़ी की सुईयों ने अपनी रफ्तार पकड़ ली थी सुबह के 10ः45 बज (पौने ग्यारह) चुके थे। साक्षात्कार देने आये लगभग सभी अभ्यर्थियों के चेहरों पर चिन्ता के भावों ने अपना अधिकार कर लिया था। संजीव ने देखा की उस दिन 50 लोगों का चयन 10 पदों के लिये लिखित परीक्षा में हुआ था। यानि एक पद के लिये 10 लोगों में से 01 का ही चयन होना था। नौ लोगों से खुद को बेहतर साबित करना ही वहाँ सबके चिन्ता का विषय था, वैसे तो उस दिन संजीव भी अपने घर से पूर्ण आत्म विस्वास के साथ वहाँ आया था और आता भी क्यों नही। क्योकि उस दिन एक ओर तो संजीव की माँ ने उसके लिए अपने ईश्वर से उसकी सफलता की प्रार्थना की थी, तो दूसरी ओर उसके रहीम मामा ने उसके लिए अपने खुदा से उसकी कामयाबी की दुआ, इबादत की थी। लेकिन साक्षात्कार के उस आखिरी वक्त में संजीव भी कुछ नर्वस सा हो गया। वह सबके चेहरे पढ़ने की कोशिश कर रहा था, और सबके चेहरों की रंगत एक ही बात व्याँ कर रही थी, कि कैसे हम 10 लोगों खुद को निपुण साबित करें। लेकिन उस वक्त भी आविद और उसकी तरह कुछ ऐसे भी लोग थे जिनके माथे पर चिन्ता की एक सिकन तक न थी। उनके चेहरे देखकर वही वस यही लग रहा था कि वो भी बस आविद की तरह यही कह रहे हो, कि हम तो सिर्फ शक्ल दिखाने आये हैं। उनके चेहरो की रंगत और मुस्कान देखकर तो बस यही लग रहा था कि वो कोई साक्षात्कार देने नही बल्कि अपना ज्वाइनिंग लेटर लेने आये हो। बस कुछ पलों में अन्दर जायेंगे और ज्वाइनिंग लेटर लेकर कल से अपनी डयूरी शुरू कर देंगे। खैर संजीव यह सब कुछ सोंच ही रहा था कि साक्षात्कार लेने वाली चयन समीति अपनी-2 गाड़ियों से आ गये। उनमें से 5-6 लोग उतरे और सीधे उस कक्ष में पहुँचे जहाँ साक्षात्कार होना था। उस दिन कुछ ऐसा प्रावधान था, कि चयनित अभ्यर्थियों को हाथों-हाथ तुरन्त नियुक्ति पत्र दिये जाने थे और अगले दो-चार दिनों में ही ज्वानिंग भी सुनिश्चित होना तय हो गया था।
कुछ देर बाद घड़ी की सुई में जब 11ः15 बजे तो दफ्तर के भीतर से एक चपरासी बाहर आकर बोला, ‘‘जितने भी अभ्यर्थी आज साक्षात्कार के लिए आये हैं, वे सभी साक्षात्कार के लिए तैयार हो जायें। क्रम संख्या-1 समीर समीर कश्यप आप आगे आइये सर्वप्रथम आपका साक्षात्कार होना है।’’ समीर कश्यप उस साक्षात्कार की सूची का पहला नाम जिसने लिखित परीक्षा में टाॅप किया था। सभी को उम्मीद थी कि समीर कश्यप वो पहला नाम होगा, जो 10 पदों में अपनी 01 सीट पक्की कर ली होगी, लेकिन सभी की उम्मीदों पर उस वक्त पानी फिर गया, जिस वक्त समीर कश्यप साक्षात्कार देकर बाहर वापस आया। उसके चेहरे पर खुुशी की कोई रेखा नही थी उसको देेखकर यही लग रहा था कि जैसेे व्यक्ति अपने सफर के आखिरी पायदार पर पहुुँचकर भी हार सहरा बाँधे फिर वापस आ गया हो। उसके चेहरे की भाव भंगिमा बता रही थी कि उसका उस साक्षात्कार में चयन नही हुआ है। वह फेल हो चुका है। लेकिन फिर भी खुद को पक्का करने के लिये संजीव ने उससे रोककर पूछा, ‘‘अरे भाई ! क्या हुआ कैसा हुआ इन्टरव्यू ?’’ समीर कश्यप ने कुछ रूंआसे स्वर में कहा, ‘‘मेरा चयन नही हो पाया जिसे सुनकर संजीव को कुछ आश्चर्य भी हुुआ कि जिसने पूूरी परीक्षा को टाप किया है, वो साक्षात्कार में कैसे फेल हो सकता है। लेकिन फिर संजीव ने सोचा हो सकता है कि शायद साक्षात्कार परीक्षा से ज्यादा कठिन रहा होगा।
कहानी अभी बाकी है…………………………….
मिलते हैं कहानी के अगले भाग में