सरकारी दफ्तर में भाग (3)
संजीव की मां ने उसको बताया कि उनके इस तरह समझाने पर भी उनकी समझ में कुछ नही आया, उन्होने उसे बताया कि तुम्हारे पिता कुछ समझने को तैयार नही होते और अगर मैं उनको अधिक समझाने का प्रयास करती तो मुझ पर नाराज हो जाते, गुस्सा करते और उनको मारते पीटते थे, वे कहते थे कि मुझे कुछ काम सीखने और काम करने की क्या जरूरत। मैं इस सल्तनत का छोटा राजकुमार हूँ और तुमको तुम्हारी जरूरत की सभी वस्तुएं समय पर मिल रही हैं चुप-चाप महल में पडी रहो। मेरे बारे में चिन्ता करने की कोई नही है जब हमारा समय आयेगा, तब देखा जायेगा अभी पिता जी का समय है। इसलिए कुछ समय बाद उन्होने उन्हे समझाना बिल्कुल बन्द कर दिया, और तुम्हारे पिता शराब की लत में इस कदर डूबे कि बस, डूबते ही चले गये। फिर कुछ दिनों के बार तुम्हारा जन्म हुआ और तुम्हारे जन्म के ढाई वर्ष के बाद गुर्दे खराब होने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई। तुम्हारे पिता की मृत्यु के 6 महीने के बाद अपने जवान बेटे के गम में तुम्हारे दादाजी भी गुजर गये। तुम्हारे दादा जी के गुजर जाने के बाद तुम्हारे ताऊ जी नेे सारा राजपाठ खुद संभाल लिया और उनका व्यवहार मेरे प्रति बिल्कुल बदल गया।
तुम्हारे ताऊ के दो बेटे थे और उन्होने अपने बेटों को तो अच्छे स्कूल में पढ़ने भेज दिया, लेकिन तुम्हारे बारे में कुछ नही सोचा, और जब मैंने उनसे तुम्हारे बारे में बात की, तो उन्होने मुझ पर गन्दी नजर डाली, मुझे अपनी पटरानी बनाने का प्रस्ताव मेरे सामने रखा, मै उनकी बात सुनकर स्तब्ध रह गई, मैंने उनसे कहा, ‘‘दादा आप मेरे पति के बड़े भाई हो, और मै भी आपको अपना भाई मानती हूँ, ये सब आप क्या कह रहे हैं, ऐसा कभी नही हो सकता, और इतना कहकर जब मैंने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया, तो उन्होने कहा, ‘‘अरे ! तुम किस जमाने में जी रही हो, यहां सब हो सकता है।’’ मेरे बार-2 मना करने पर उन्होने मेरी एक न सुनी और एक दिन जब तुम्हारी ताई अपने मायके चली गई थी और मैं महल में अपने कमरे में अकेली सो रही थी तो उन्होने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की, जब मैंने तुम्हारी ताई को उनके इस गन्दे कृत के बारे में बताया तो उन्होने भी मेरी एक बात न सुनी, और उल्टा मुझे बद्चलन, कुलटा, डाइन कहकर मुझे महल से निकाल दिया और मैं तुम्हें लेकर महल से निकल आई और जब तुम्हारे नाना को यह सब बताया और तुम्हारे नाना जब तुम्हारे ताऊ बात करने गये, तो तुम्हारे ताऊ ने उनकी भी एक न सुनी और भरे दरबार में मेरे बारे में इतने अपशब्द कहे की, कि तुम्हारे नाना ने शर्म से आत्म हत्या कर ली। तुम्हारे नाना की मौत के कुछ दिनों बाद तुम्हारी नानी भी गुजर गई। मै उस समय बिल्कुल अकेली पड़ गयी और तुम्हे लेकर तुम्हारे पुर्खाे अस्तित्व से इतनी दूर बख्शीनगर आ गई। जहां हमें कोई नही जानता था कि मैं कौन हूँ। यहां आकर मैंने एक साधारण जीवन जीने का निर्णय लिया और मेहनत मजदूरी करके तुम्हे पढाने कर निर्णय लिया, और तुम्हें इस काबिल बनाने का निर्णय लिया कि तुम जहां भी जाओं, वहां तुमको सब लोग उसी सम्मान से देखे जो वास्तव में तुम्हारा अधिकार है और आज तुम इस काबिल हो कि तुम्हे अपने पुर्खाे नाम की कोई जरूरत नही, और मेरे इस सपने को तुमने काफी हद तक पूरा भी किया। तुम्हारा हर कक्षा में प्रथम श्रेणी में पास होना यही मेरा ईनाम है।
इतना सबकुछ जानने के बाद संजीव की जिज्ञासा और बढ़ी तो उसने अपने ताऊ-ताई और राजमहल के बारे में पूछा। संजीव के पूछने पर उसकी माँ सीता देवी ने उसे बताया कि तुम्हारे दादा जी के दुनिया चले जाने के बाद राज्य की सारी शक्तियों पर तुम्हारे ताऊ ने अपना एकाधिकार कर लिया और उनका स्वभाव इतना बदल गया कि वो किसी से बात करने की सभ्यता तक भूल गये जिसके चलते उन्होने अपने कई दुश्मन बना लिये और तुम्हारे ताऊ चारों ओर से युद्ध करने लगे। तुम्हारे ताऊ बचपन से ही युद्ध कला में पारंगत थे इसलिए कोई भी उनका सामना नही कर सकता था, लेकिन वो कहते है कि मृत्यु जब आती है तो कोई युक्ति और शक्ति काम नही आती सबकुछ धराशाही हो जाता है। तुम्हारे ताऊ के साथ भी ऐसा हुआ उन्होने अपने अंहकार बस इतने दुश्मन बना लिए कि एक दिन रात्रि काल में उनके दुश्मनों ने महल में घुसकर तुम्हारे ताऊ, ताई और उनके दोनों बेटों को मौत के घाट उतार दिया।
काफी दिनों के बाद जब मैंने यह बात सुनी, तो मैंने उस राजमहल में वापस जाने के बारे में सोचा, लेकिन तुम्हारे रहीम मामा और पास-पड़ोस के कई लोगों ने मुझे वहाँ जाने से मना कर दिया, और मुझे समझाया, कि इस वक्त तुम्हारा वहाँ जाना ठीक नही। तुम्हारे जेठ के दुश्मनों ने उनके साथ उनकी पत्नी, बच्चों तक को नही छोड़ा, और तुम्हारे जेठ की मौत के बाद उनके दुश्मनों ने उस महल पर अपना कब्जा भी कर लिया होगा, ऐसे में तुम्हारा वहाँ जाना कतई ठीक नहीं। ऐसी परिस्थिति में अगर तुम महल में गई, तो शायद वो तुम्हारे बेटे संजीव और तुमको भी मौत के घाट उतार दें। तुम्हारे परिवार में तुम्हारे वंश को बढ़ाने वाला केवल संजीव बचा है, अब इसी के सहारे तुम अपनी जिन्दगी बिताओ। तुम्हारे रहीम मामा से जब मैंने इस बारे बात की, तो उन्होने भी मुझे समझाया। सीता मैं तुमको सिर्फ कहने के लिये बहन नही बोलता, बल्कि तुम्हे दिल से बहन मानता हूँ, और तुम दोनो ही मेरे परिवार वाले हो, जब तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ है, तो तुम्हे चिन्ता करने की जरूरत नही, अब आगे तुम्हारी मर्जी।
उसकी माँ ने उसे बताया, कि बस इसी डर के कारण मैं तुम्हे वहाँ लेकर नही गई, और मैं यही बस गई। यही रहकर मैंने साहूकारों के घर में झाडू-पोछा करके तुम्हारी पढ़ाई करायी। क्योंकि मैंने ठान लिया था, कि एक शराबी का बेटा शराबी कतई बनेगा।
कहानी अभी बाकी है…………………………….
मिलते हैं कहानी के अगले भाग में