सम्मान- समारोह का पैकेज (हास्य कथा)
सम्मान- समारोह का पैकेज (हास्य कथा)
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कल भाई साहब के घर पर जाना हुआ। ड्राइंग रूम में शो- केस में सुंदर सा सम्मान- पत्र शीशे के साथ सुनहरे फ्रेम में जड़ा हुआ था । सम्मान- पत्र पर भाई साहब का चित्र था और नीचे उनका नाम समाजसेवी शब्द के साथ सुशोभित हो रहा था। देख कर मुँह में पानी आ गया। हमने पूछा “यह कहाँ से मिला ? कैसे मिला?”
हमारी उत्सुकता जानकर भाई साहब ताड़ गए कि ग्राहक फँस गया । बोले “तुम चाहो तो तुम्हारे लिए भी ऐसा ही सुंदर सम्मान- पत्र बनवा दें। एक समारोह में तुम्हें दे दिया जाएगा ।”
हम सुनकर प्रसन्न हो गए। नेकी और पूछ – पूछ । ” भाई साहब ! सम्मान पत्र बनवाने का जो खर्चा आए, आप हमसे ले लेना और हमें भी एक सम्मान पत्र दे देना ताकि हम भी उसे अपने घर पर ड्राइंग रूम में ले जाकर रख सकें।”
भाई साहब बोले “बारह हजार रुपए खर्चे का पैकेज है। तुम्हें कुछ नहीं करना पड़ेगा । सारा इंतजाम हम करेंगे ।”
रकम सुनकर हम उछल पड़े। हमने कहा “इतने रुपए में तो किताब छप जाएगी ?”
भाई साहब बोले “तो किताब ही छपवा लो । सम्मान- पत्र के लिए क्यों लार टपका रहे हो ? ”
हम निरुत्तर थे । भाई साहब ने समझाया ” किताब का महत्व अपनी जगह है , सम्मान- पत्र का महत्व अपनी जगह है। किताब से सम्मान थोड़े ही मिलता है। सम्मान- पत्र से ही सम्मान मिलता है ।बात को समझने की कोशिश करो। पैसा क्या है? हाथ का मैल है ।और किताबों में क्या रखा है? किसी की 18 किताबें छपीं या 19 किताबें छपीं,इससे क्या फर्क पड़ेगा ? लेकिन जिंदगी बीत गई और सम्मान- पत्र एक भी नहीं मिला तो सोचो ! कब्र में पैर लटकाए हुए यही अफसोस रहेगा कि काश बारह हजार रुपए खर्च कर देते तो आज जिन्दगी की शाम में हमारे पास एक सम्मान पत्र तो होता।”
हमने कहा “बात तो ठीक कह रहे हैं। लेकिन पूरी योजना बताइए ।”
भाई साहब बोले “आराम से बैठो ।” एक कप चाय अपने लिए और एक कप चाय हमारे लिए बनवाई । कहने लगे “सम्मान समारोह का बिजनेस आजकल सबसे अच्छा है । हमने तो यही पकड़ लिया है। “सम्मान कर्ता : एक समाजसेवी संस्था” नाम से कार्यक्रम चलाते हैं। विभिन्न शहरों में जगह-जगह जाकर सम्मान समारोह का आयोजन करते हैं। एक व्यक्ति से बारह हजार रुपये लेते हैं । कम से कम आधा दर्जन लोगों का अभिनंदन होता है। बहत्तर हजार रुपए आते हैं । दस-पन्द्रह हजार का खर्चा बैठता है । पचास -साठहजार रुपए की शुद्ध कमाई होती है।”
हमने कहा” खर्चा किस बात का ?”
बोले “देखो , सम्मान- पत्र अच्छी क्वालिटी का तीन सौ रुपये का आता है। शाल सौ रुपये का काम कर जाता है। फूलों की माला बीस रुपए की आती है। हम सभी अतिथियों को जलपान कराते हैं। प्रत्येक प्लेट में दो समोसे, एक मिठाई का पीस, चार चम्मच दालमोठ और एक कप चाय देते हैं। होटल का हॉल पाँच हजार रुपए में सुसज्जित रूप से मिलता है। हम इसमें कंजूसी नहीं बरतते। एक समारोह में 50-60 हजार रुपये के करीब बचा तो साल में पाँच- सात लाख रुपये का टर्नओवर हो जाता है । और क्या चाहिए ! ”
हमने कहा “हमें मंजूर है ।”
जेब से अपनी बारह हजार रुपये हमने निकाले और भाई साहब के हाथ में पकड़ाए। पूछा “सम्मान- समारोह हमारा कब होगा ?”
वह बोले “अगले महीने हो जाएगा। बात पक्की है ।”
हम उठकर जाने के लिए तैयार हुए लेकिन जाते-जाते फिर पलटे और पूछा “भाई साहब बारह हजार रुपये की रसीद देंगे?”
भाई साहब मुस्कुराने लगे। बोले” रिश्वत की भी कोई रसीद माँगता है।”
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99 97 61 5451