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14 May 2023 · 1 min read

सम्बन्धों की आड़ में, फन फैलाये शूल।

सम्बन्धों की आड़ में, फन फैलाये शूल।
ज्यों फूलों की पाँखुरी, ओढ़े हुए बबूल।।

रिश्तों के मकरंद में, भर आती दुर्गंध।
समझौतों के गोंद से, जुड़ते जब सम्बंध।

नहीं रही शीतल हवा, नहीं सुखद परिवेश।
समझौतों का जब हुआ, आना दिल के देश।।

परदेशी जब वह हुआ, था चंदन की खेप।
लौटा जब तो साथ में, लाया विष का लेप।।

प्रेम, त्याग, विश्वास हैं, रिश्तों के तनुत्राण।
सम्वेदनाविहीन सब, रिश्ते हैं निष्प्राण।।

—राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

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