सम्पति
नमन
सपना के सम्पति भइल,बचपन के ऊ बाति।
भोर परेला ना कबो,याद रहे दिन-राति।।१।।
सपना के सम्पति भइल,अब नाहर के लोग।
बेटी दूरन्देश में,कठिन मिलन के जोग।।२।।
आपन सम्पति ढॉंपि के,ललचे अन का देख।
जग आगे रोवत फिरे,बिगड़ल बिधि के लेख।।३।।
जन मन में सोचल करें,धन संचय के बाति।
भोगें ना कवनो घरी,जगें भरि भरि राति।।४।।
सगरो सम्पति छोड़ि के,सभे एक दिन जात।
तवनो पर चेते कहाॅं,हरदम रहे धधात।।५।।
**माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)**