*समुद्र का वो हर पल निराला*
समुद्र का वो हर पल निराला
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समुद्र का वो हर पल निराला है,
लहरों को निज संग भगाता है।
कौन निकाले गहराई से मोती,
तल भी गहरा मौत का पहरा है।
लहर लहर लहराए सागर धारा,
गीत गाती नदिया आवारा है।
शांत शीतल नीला दरिया पानी,
गौरी का जैसे यौवन कुंवारा है।
उमड़ उमड़ उमड़ता ठंडा नीर,
किसी को न मिलता किनारा है।
क्रोध में जल उठता ज्वारभाटा,
बचने का न मिलता सहारा है।
कोई न जानता वेग मनसीरत,
बहने का वही तरीका पुराना है।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)