समीक्षा सॉनेट संग्रह
सॉनेट के दो अनुदित पुष्प
प्रतीची ….और ओ प्रिया
अनुवादक -श्री विनीत मोहन औदिच्य ज
समीक्षक -श्रीमती मनोरमा जैन “पाखी”
सॉनेट एक ऐसी विधा जो अपने विन्यास और विधान के साथ संक्षिप्तता से सभी को आकृष्ट करने में सक्षम है। इस विधा पर ऊँगलियों पर गिने जा सकने वाले लोगों ने ही कलम चलाई।अनुदित पुस्तकों की चर्चा से पूर्व सॉनेट के बारे में जानना जरुरी है ।
प्रतीची से प्राची पर्यंत
काव्यसंग्रह के बारे में कुछ कहूँ,बेहतर होगा अगर पहले सॉनेट समझें।जितना मैं जानती हूँ और जितना पुस्तक पढ़ के समझी वह यह है कि मात्र 14पंक्तियों वाली गेयतागुण की रचना जिसे छायावादी काल में मिली प्रमुखता ने प्रगीत की श्रेणी में ला खड़ा किया।यह अंग्रेजी कविता की एक विधा है जैसे अपनी हिंदी में छंद।
अंग्रेजी कविता का यह वह मूल रूप है जिसे हिन्दी साहित्यकारों ने भी खुलेमन से अपनाया। यद्यपि अँग्रेजी और हिन्दी सॉनेट में पर्याप्त भिन्नता है।यह लयबद्ध नहीं होते लेकिन माधुर्य और लयप्रवाह अवश्य रहता है।संगीत के विधान के अनुरुप गेयपद रचना,जिसमें काव्य व संगीत तत्व प्रधान होते हैं।वहीं सॉनेट या प्रगीत किसी एक ही विचार भावना अथवा परिस्थिति से संबंधित होती है ।इसकी रचना शैली भावपूर्ण होती है।इसे छोटी धुन के साथ मेण्डोलियन या ल्यूट (एक प्रकार का तार वाद्य)पर गाई जाने वाली रचना होती है।
सानेट की अन्य विशेषताओं के साथ तीन विशिष्टतायें भी हैं जिसे नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता।
1-आकृति की विशिष्टता
2-भाव विशिष्टता के साथ व्यक्तिगत अभिव्यक्ति
3-कल्पना,प्रेरणा,माधुर्य के साथ संपूर्णता(सर्वांग)
फ्रॉ गुइत्तोन ,जिनको काव्य साहित्य का कोलंबस कहा जाता है ,उनके अनुसार सॉनेट की प्रत्येक पंक्ति में दस मात्रिक ध्वनियाँ होनी चाहिए।गुझ्तोन के सॉनेट में कुल 14चरण होते हैं जो.दो भागो में बँटे होते हैं –1 अष्टपदी 2–षष्ठपदी।इनका तुकांत क्रम भी अलग होता है।(इनके बारे में फिर कभी अवसर मिलने पर )
इटली के सॉनेट में प्रमुखतः5रूप दिखते हैं जो अपनी विशेषताओं के कारण जाने जाते हैं।(विस्तार के कारण इनके बारे में बाद में )
हिन्दी में सॉनेट बीसवीं सदी में आया ।कुछ कवियों ने इसे अपनाया पर अधिक ध्यान न दिया। त्रिलोचन शास्त्री हिन्दी सॉनेट केस्थापक माने जाते हैं।इन्होंने 550के लगभग सॉनेट लिखे ।इस विधा का भारतीय करण उन्होंने ही किया। रोला छंद को आधार बना कर बोलचाल की भाषा और लय का प्रयोग करते हुये चतुष्पदी को लोकरंग में रंगा। उनके सॉनेट में 14 पंक्तियाँ ही होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्रायें। सानेट के.जितने भी रूप–भेद साहित्य में हैं,उन सभी को त्रिलोचन शास्त्री जी ने अपनाया..।एक उदाहरण देखते हैं (केवल चार पंक्तियाँ उदा. हेतु उचित होंगी)—–
विरोधाभास सानेट का उदाहरण–
संवत पर संवत बीते वह कहीं न टिटहा ,
पाँवों में चक्कर था द्रवित देखने वाले
थे परास्त हो यहाँ से हटा,वहाँ से हटा
खुश थे जलते घर से हाथ सेकने.वाले।
——————-********————–*********————–
अब बात प्रतीची……की
अनिमा दास जी ,जोकि ओड़िशा के कटक में जन्मी ।आज वहीं एक मिशनरी इंग्लिश मीडियम स्कूल में शिक्षिका हैं।सॉनेट में सिद्धहस्त और छंदमुक्त सृजन में जीवन डालने की क्षमता है।आपके विषयों में प्रकृति,सामाजिक समस्याओं का चिंतन. आपकी विशेषता है लेकिन प्रेम और मृत्युके प्रति आप अधिक संवेदन.शील.हैं।
पुस्तक के उत्तरार्ध में आपने औड़िया सॉनेट यात्रा पर चिंतन शील आलेख लिखा।
जिन कवियों के सॉनेट अनुदित किये हैं ,उनमें पद्मश्री प्राप्त कवि भी हैं तो प्रथम सॉनेट कवि भी है ।तीन सॉनेट कवित्रियों को भी स्थान मिला है। बहुत ही श्रम से और संपर्कसूत्र के माध्यम से आपने 29कवियों की रचनाओं को चुना ।हर सॉनेट अपने इर्द गिर्द एक विशेष आवरण सृजित करता है।
प्रस्तावना में आपने ओड़िया सॉनेट के सत्तर दशक पर प्रकाश डाला है ।जो उनके गहन अध्ययन को स्पष्ट करता है ।
“इक्कीसवीं शताब्दी का द्वितीय दशक में गतिमान ओड़िया सोनेट तथा उनके कवियों की अन्वेषण यात्रा,आविष्कार-प्रसूत विस्मयानुभूति एवं आवेगपूर्ण अनुभूतियों से रसासिक्त है।”
उपरोक्त कथन ओड़िया सोनेट के प्रति कवियों के आकर्षण को स्पष्ट करने हेतु काफी है।
अनिमा जी कहतीं हैं कि,”खोजने-पाने-भाषांतरण करने के.द्वंद-आनंद-घर्षण में समाप्त हुआ है यह अनुवाद कार्य।”
एक कवि के अंदर यह चिंतन होना ही चाहिये तभी कालजयी सृजन मन को स्पर्शित करता है।
ओड़िया सोनेट को पाँच भागों में बाँटते हुये प्रमाणिकता से विस्तार पूर्वक स्पष्ट किया है ।(यह प्रकरण भी बाद में ..।)
वस्तुतः आद. विनीत मोहन औदिच्य जी एवं आद. अनिमा दास Anima Das जी ने जिन कवियों को इस पुस्तक में सहेजा है .दोनों की भूमि सर्वथा अलग है ।इसी कारण जहाँ अंग्रेजी सोनेट म़े विधा की सभी बारीकियाँ होने के साथ ही मृदुलता में कमी लगी वहीं ओड़िया कवियों के सोनेट लालित्यपूर्ण हैं। वैसे भी ओड़िसा कला भूमि है और माटी व जल का असर अवश्य पड़ता है।
तथापि अंग्रेजी सोनेट में गेयता ,लय है ..याद हो जाये तो गुनगुना सकते हैं।पर इन सोनेट की आत्मा तक पहुँचे बिना आप न आनंद ले सकेंगे न रसास्वादन।
भक्तिकाल से ओड़िया सोनेट परंपरा दिखती है जो अनवरत वर्तमान तक जारी है। पुस्तक में 1853 से लेकर 1961 तक की रचनाएँ संजोई गयी हैं।
इसमें कवियत्री बनज देवी जी के सोनेट भी हैं जिनके सोनेट संग्रह 2010 में प्रकाशित हुये हैं। कुंतलाकुमारी साबत और वीणापाणि पंडा जैसी कवित्रियों के सोनेट लिये हैं वहीं पद्मश्री सच्चिदानंद राउतराय जिन्हें 1986 में ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुका .।ऐसे विशिष्ट कवियों की रचना को सहेजना और हम तक पहुँचाना इतना सरल भी नहीं ।
आइये देखते हैंकुछ ओड़िया सोनेट ..सर्वप्रथम पद्मश्री राय जी का सोनेट —
“जीवन संगीत
है घनीभूत प्रहेलिका सदृश मेरा ये जीवन वन
किंतु रहता अस्पर्श हो कर अत्यंत निकट
मूर्तिमान आशीष सम होता उसका आगमन
शत सिंह के बल से करता नाश बाधाएँ विकट।….।..
रुपक अलंकार ,उपमा अलंकार के साथ जीवन क्या है और उसका संगीत क्या है ? समझने के.लिए काव्य में उतरना होगा।
”
*********
व्यासकवि फ़कीर मोहनसेनापति …
कर्तव्य साधन
“यूँ ही बीत रहे नित्य अकारण दिन के पश्चात दिन
क्यों बन नीरव निर्विकार ,बैठे हो कुछ किये बिन ?
कर्तव्य साधन ही है इस जगत में वास्तव जीवन
आलस्यता में समय का होना व्यतीत है आत्म दहन ।”
आमतौर पर कवि दिन रात दोनों को ही साथ रखते हैं जिससे समय की गतिशीलता दिखती है ।यहाँ दिन पश्चात दिन ..बहुत गहरा और विस्तृत अर्थ लिये है । उपमा अलंकार ,शब्दा लंकार के साथ गेयता लय ,गति सब मौजूद है और भाषा गत सौंदर्य भी ।सहज सरल बोधगभ्य ।
*******^^^^^********^^^^^^^**********^^^^^^^^^^******
बनज देवी
स्वर्ण से भरी है नाव
“चुने गये प्रसून सी भरती रही आँचल में वेदनाएँ
जैसे शिशिर की चमक लिए पंखुड़ियों में कलिकाएँ
व्याकुल दृष्टि के पटल पर सिक्त पीड़ाओं की धूलि
शोक के अशोक गुच्छों से भरती रही हृदयांजलि…।”
काव्य का संपूर्ण सौंदर्य इन पंक्तियों में उमड पड़ा है । नारीप्रधान कवियित्री होने पर भी इनकी पंक्तियाँ कहीं से भी भाव भाषा शैली अलंकार से विश्रृँखलित नहीं हुई।
********************************
प्रस्तुत पुस्तक के द्वय अनुवादकों ने कवि कर्म को पूरी निष्ठा से निभाया ।कलम ने कर्तव्य, पूरी लगन और समर्पण से पूरा किया।
दोनों अनुवादकों के श्रम ,लगन ,निष्ठा को अनदेखा करना धृष्टता और कलम के साथ गद्दारी होगी।
फिर भी पुस्तक के विषय म़े अभी बहुत कुछ कहा जाना शेष है । हर रचना को पढ़ना समझना ,उसकी गहराई महसूस करना फिर विवेचना करना ….।उसमें वक्त लगेगा।
शायद कभी सभी रचनाओं पर मेरी कलम इतना श्रम कर पाये तो स्वयं को गौरवान्वित समझूँगी।
अनिमा जी के शब्दों में कहूँ तो यह पतझड़ के पश्चात की नव कोंपलें हैं जिसे वृक्ष बनने में देर नहीं लगेगी।
पुस्तक के बारे में कोशिश की है सही परिचय दे सकूँ।
#प्रतीची_से_प्राची_पर्यंत–
दो भागों में विभक्त इस पुस्तक की विशेषता है अंग्रेजी व औड़िया भाषा के सॉनेट्स का हिंदी में अनुदित होना और पाठकों के हाथ में पहुँचना।
प्रथम भाग की अंग्रेजी रचनाओं को आद. विनीत मोहन औदिच्य जी ने हिंदी में अनुदित किया है तो दूसरे भाग की ओड़िया भाषा की बेहतरीन रचनाओं को अनिमा दास जी ने अनुदित किया है।निःसंदेह श्रम के साथ धैर्य ,रचनाओं का चयन आदि पुस्तक को गँभीर आवरण देता है।
ब्लैक ईगल बुक्स से पब्लिश इस पुस्तक की कीमत 300/ है।
प्रस्तावना से पता चलता है कि आद. औदिच्य जी को अंग्रेजी सॉनेट कविताओं की पुस्तक उनके पिताश्री से विरासत में प्राप्त हुई।
बात करें प्रथम भाग की तो, प्रेम ,सौंदर्य ,प्रकृति आदि के वृहद कलेवर को मात्र 14 पंक्तियों में लिखना आसान नहीं है। सानेट कब से लिखे गये,किसने लिखे ,किस कालखंड में किसके लिए ,किससे प्रेरित होकर लिखे गये ,प्रस्तावना में विशेष रुप से इंगित किया गया है।
अगर मूल रचना यानि अंग्रेजी कविताओं को पढ़ा जाये तो निःसंदेह अनिवर्चनीय आनंद रस की प्राप्ति होगी। और औदिच्य जी का श्रम ,लगन इस पुस्तक के प्रथम भाग में स्पष्ट दिख रहा है।
अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद हिंदी में करते हुये पूरा ध्यान रखा गया है कि कविताओं की मूल भावना आहत न हो,ज्यों की त्यों रहे।
यही कारण है कि कविताओं में निहित भाव,रस ,अलंकार ,लय ,तुकांत के साथ संगीतात्मकता भी बरकरार रही।
किसी भी विचार का– आविर्भाव,प्रस्तावित, विकास और पूर्णत्व -चरमोत्कर्ष –ये विविध सोपान होते हैं ।रचनाओं का अनुवाद करते वक्त इस तथ्य का ध्यान.रखा गया है।प्रेम परक रचनाएँ अपनी उच्चता के शिखर पर मन को आलोड़ित करती हैं। प्रेम में वासना नहीं अपितु स्वर्गीय सौंदर्य के दर्शन होते हैं।
संरचना व कालखंड के आधार पर सानेट का वर्गीकरण ,सॉनेट के इतिहास को स्पष्ट करता है और विकासक्रम भी।
आइये कुछ रचनाओं का आस्वादन करते हैं प्रतीची भाग से ।
इस पुस्तक में एक बात का और ध्यान रखा गया है जो पुस्तक को विशिष्ट और प्रमाणिक बनाती है ,वह है पुस्तक में चयनित कवियों का कालखंड,रचना काल और किसको समर्पित की गयी ,इसका उल्लेख।
पहली रचना एडमंड स्पेंसर की है जो एलिजाबेथ काल के कविहैं जिनकी सानेट श्रृँखला 1515 में प्रकाशित हुई ।यह श्रृँखला उनकी प्रेयसी जो बाद में पत्नी भी बनी ,एलिजाबेथ बोयेल को समर्पित है।
सानेट की खूबसूरती देखिये ..
One day ,I wrote her name
रेत पर लिखा मैंने उसका नाम एक दिन हाथ #से
परंतु बहा कर ले गयी उसे अचानक तीव्र #लहरें
दूसरे हाथ से लिख दिया मैंने उसका नाम फिर #से
फिर से बहा ले गयीं अपना शिकार पीड़ा को #भँवरे।
**************
माइकेल ड्राइटन
चूंकि कोई नहीं है सहायक,हम लें चुंबन और हों पृथक
नहीं, मैं हूँ आश्वस्त, तुम नहीं हो सकोगी मुझसे संयुक्त।
और मैं हूँ आनंदित, हाँ पूर्ण मन से आनंदित अथक
कि इस प्रकार स्पष्टता से मैं स्वयं हो सकता हूँ मुक्त ।
****************
उपरोक्त दो अंश मात्र उदाहरण हैं आद. विनीत विनीत मोहन औदिच्य जी की लगन और समर्पण का।
जो भी रचनाएँ चयनित की हैं वह भाव,संवेदना के स्तर पर गहरी प्रतीत होती हैं। गाँभीर्य सौंदर्य ,और गहराई से अछूते रहना सँभव ही नहीं।
इस पुस्तक हेतु आद. विनीत मोहन औदिच्य जी को बधाई। बेहतरीन कविताओं से रुबरु करना के लिए ।
उल्लेखनीय है कि सॉनेट पर भारत में बहुत कम काम हुआ है।
नवीन पाठक हेतु प्रस्तावना में गहन व उपयोगी जानकारी निहित है जो पाठक के मस्तिष्क को कुरेदते सवालों के पर्याप्त उत्तर देने में सक्षम है।
पाखी