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27 Dec 2021 · 3 min read

समीक्षा दोहा गाथा

पुस्तक समीक्षा
नाम -दोहागाथा
लेखक अमरनाथ अग्रवाल ,लखनऊ

1फरवरी ,1941
इस दिन जन्म हुआ एक चिंतक,लेखक और कविहृदय ,छंदज्ञाता व विविध विधाओं के पुरोधा कलमकार ,गुरु अमरनाथ अग्रवाल जी का।सिविल इंजीनियरिंग की शिक्षा और कर्म क्षेत्र अभियंता साथ में कर तूलिका ।मानो देवी सरस्वती का खुले हस्त वरदान ।
श्रम,लगन और स्पष्ट ध्येय,अनुशासनप्रिय ,कुछ कठोर ,कुछ मृदुल आदि गुणों के कारण जहाँ एक ओर आप अपने लक्ष्य तक पहुँचे ,वहीं दूसरी ओर ऐसे शिष्य मिले जो आपके द्वारा की गयी मेहनत व शैक्षिक कर्म के प्रति समर्पण से अपनी पहिचान बना कर चमक रहे हैं। और यह फेहरिस्त लंबी है।
इसी तारतम्य में आपका साहित्यिक परिचय किसी से अछूता नही। प्रकाशित हुई कृतियों में व्यंग के रंग भी हैं तो चुटीली चुटकियाँ भी।हास्य की तरंग भी है तो जिंदगी के बिखरे रंगों की कहानियाँ और पौराणिक आख्यान पर खंड काव्य भी ।राष्ट्रीय गीत के साथ नारी प्रधान गीत भी ,छंद सागर और दोहे भी
साझा संकलन लगभग 28,
85 पुस्तकों की समीक्षा के अलावा कर्म से जुड़े जमीनी सम्मान व पुरस्कार भी हैं ।इनमें फेसबुकिया सम्मान शामिल नहीं है।
ऐसे व्यक्तित्व की एक बहुप्रतीक्षित कृति #दोहा_गाथा आज मेरे हाथ आई। इस कृति के प्रथम दर्शन कर लगा कि बहुत गूढ़ जानकारी निबंधित है ।मेरे जैसी कूढमग़ज कहाँ समझ पायेगी।पर उत्सुकता वह भी करवा देती है जो आप सोच भी नहीं सकते।
समन्वय प्रकाशन अभियान ,जबलपुर से प्रकाशित यह दोहा गाथा कबीर,रहीम,तुलसी और बिहारी जी को समर्पित है ।मुख पृष्ठ यही संकेत देता है।मूल्य 150/जो इस पुस्तक की उपयोगिता को देखकर कम अवश्य लगता है पर सभी सुधिजनों और जिज्ञासुओं तक पहुँच सके ,इसलिए यह मूल्य खटकता भी नहीं।
प्रस्तुत पुस्तक निबंध शैली की सभी विशेषताओं को समेटे हुये है।आद. अमरनाथ सर जी की मेहनत और पैनी दृष्टि ने दोहा छंद से संबंधित शोधात्मक निबंध लिखा है जो बहुजनहिताय है।दोहा जैसे छंद पर 100पृष्ठ की सामग्री जुटाना ,वह भी प्रमाणित ,निःसंदेह श्रमपूर्ण है।
दोहों की उत्पत्ति ,विकास और इतिहास जानना अपने आप म़े रुचिकर है ।वहीं इसका सरल विधान ,प्रकार (भेद)संरचना ,उर्दूमापनी यानि औजान पर भी दोहों की सटीकता प्रमाणित करना आप जैसे चिंतनशील व्यक्तित्व ही कर सकते है।
दोहों का विभिन्न रूपों में प्रयोग ,भाषाओं-बोलियों के दोहे सौदाहरण ,दोहों के विभिन्न रुप ..निश्चय ही दोहों के प्रति अबोध बालक का ध्यानाकर्षण कर सकने में सक्षम है।अन्य छंदों के साथ दोहों की तुलना या दोहा विधान के आधार पर अन्य छंदों का सहज सृजन इस पुस्तक को उपयोगी बना देता है।
वर्तमान में नवीन छंदों का निर्माण बहुत तेजी से हो रहा है और रचनाकार स्वयं का नाम देकर ,स्वयं को उस छंद कि निर्माता बता रहे हैं ।वस्तुः दोहों या अन्य छंदों में संशोधन,विभाजन या परिवर्तन कर के नया छंद शास्त्र किस तरह सृजित हो सकता है ,इस पर भी आदरणीय ने गहन विचार कर कलम चलाई है।
आपने प्रमाण रुप से आदि कवियो से लेकर नवीन.कलमकारों के सृजनको इस पुस्तक में उदाहरण रुप में लिया है।
इस पुस्तक का उल्लेखनीय भाग है संदर्भित ग्रंथ और पत्र-पत्रिकाओं की सूची जो शंका होने पर आप स्वयं देख सकते है।
किसी पुस्तक की सामग्री का प्रमाणीकरण उसमें उल्लेखित संदर्भ स्वयं ही दे देते हैं।प्राचीन ग्रंथ छंदप्रभाकर ,छंदःशेखरसे लेकर नवीनतम पुस्तक दोहा सलिला निर्मला तक का आपने वैचारिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया है। उल्लेखनीय तथ्य कहूँ या गौरवपूर्ण –जैन कवियों और रचनकारों या आचार्यों को भी आपने इस लघु ग्रंथ में प्रमाणित मान स्थान दिया है ..यथा आचार्य पुष्पदंत,स्वयंभू,।
मेकलसुता,प्राची-प्रतिभा,अपरिहार्य, नर्मदा,विश्वविधायक,अयोध्या संवाद और देश का आइना जैसी पत्रिकाओं से भी सामग्री जुटाई गयी है ।जो निःसंदेह आदरणीय जी की अध्ययनशीलता को स्पष्ट करती है।

आइये पुस्तक से उद्धृत कुछ अंश देखते ह़ै…

दोहे के विभिन्न रूप —दोहे के आधार पर ही अन्य दोहों का जन्म हुआ .।जैसे अद्भुद दोहे ,दुमदार दोहे ,ड्योढ़े दोहे,अलंकार दोहे,हाइकु दोहे ,दग्धाक्षरी,अनुप्रासी……।
#अद्भुद दोहे :–

निम्न दोहों में अनुप्रास का सुंदर उदाहरण देखिये

झीने झर झुकि -झुकि झमकि,झलनि झाँपि झकझोर।
झुमड़-घुमड़ बरसत सघन,उमड़ि-घुमड़ि घनघोर।।(मेकलसुता,अप्रेल-जून11)

नाम ललित लीला ललित, ललित रूप रघुनाथ।
ललित बसन,भूषन ललित ,ललित अनुज सिसु साथ।।
(तुलसीदास-दोहावलि,120)

पर्यायवाची शब्दों को लेकर भी दोहा गूंथा गया है रामचरितमानस के लंकाकांड में तुलसीदास जी द्वारा …
बांधयो जलनिधि नीरनिधि,जलधि,सिंधु वारीश ।
सत्य तोयनिधि कंपति ,उदधि पयोधि नदीश।।

वस्तुतः दोहा छंद वह सूत्र है जिसने इसे पकड़ साध लिया तो यह निश्चै है कि माँ शारदे की कृपा से वह बेहतरीन छंद सृजन कर सकता है।
अस्तु इस अमोल पुस्तक के बारे में निःशब्द हूँ।गहनतम सूक्ष्म अध्ययन के द्वारा ,अन्य ग्रंथों के मंथन से यह नवनीत निकला है।जिसे पुनः अध्ययन कर कुछ और समझूँगी।
मनोरमा जैन पाखी
मेहगाँव ,जिला भिण्ड
मध्यप्रदेश –477557
संपर्क सूत्र–88399-34742

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