समसामयिक कुंडलिया छंद
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सरिया बिन छत डालते , करते रहे कमाल।
कहलाते इंजीनियर मिस्त्री वंशीलाल।
मिस्त्री वंशीलाल, आत्मविश्वासी इतने।
ढाली अपनी स्लैब, बिना प्रबलन ही उसने।
बीते वर्ष पचीस, गिरी छत मन में गरिया।
बच जाता परिवार, ढली होती यदि सरिया।।
जैसा जिसका क्षेत्र है, वैसा ही हो कार्य।
कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण, कभी नहीं स्वीकार्य।
कभी नही स्वीकार्य, नतीजे घातक होते।
होती मन में ग्लानि, नयन भर आँसू रोते।
अभियंता हैं साथ, काम मिल करिये ऐसा।
संरचना हो स्वस्थ, कर्म अभियंत्रण जैसा।।
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–इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’