समर्पण भाव तन मन में ,कन्हैया तेरी दासी हूँ।
समर्पण भाव तन मन में ,कन्हैया तेरी दासी हूँ।
कहां जाऊं तुम्हारे बिन तेरे दर्शन की प्यासी हूँ।
नही कुछ चाहिए मुझको,तुम्हारा साथ काफी है,
बहुत बेचैन हूँ भगवन, बिना दर्शन उदासी हूँ।
तुम्हारी मोहनी मूरत ,मेरे मन को बहुत भाती,
मेरे मनमें बसों मोहन मैं मथुरा की निबासी हूँ।
मेरी मझधार में नैया,संभालो यशौदा के छैया,
न कुछ हस्ती मेरी भगवन,तेरी सेवक जरासी हूँ।
शरण में जो तेरी आये सदा उनकी निभाते हो,
सुनीता को बचा भगवन तेरी चरणों की वासी हूँ।