समर्थवान वीर हो
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/2282e3e093a229be4c957e9b01f0e1fa_9f69e9670dcfabdba1859c6491bca8b9_600.jpg)
समर्थवान वीर हो
अभय भुजंग पीर हो
भेष या हो जंग हो
वीर जो तरंग हो
अभेद उसके अंग हो
कृष्ण जिसके संग हो
धीर हो, अधीर हो
पर वो धर्मवीर हो
अचूक जिसके तीर हो
थल हो या हो नीर हो।
बल प्रबल, ना ढल सके
शौर्य जो उबल सके
कुटिल अकल, जो छल सके
अटल भी जिससे टल सके।
मानुष जो एक सुधीर हो
समर्थवान वीर हो।
समर्थवान वीर हो
अभय भुजंग पीर हो।।
✍️ सारांश सिंह ‘प्रियम’