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3 Jul 2024 · 1 min read

समर्थवान वीर हो

समर्थवान वीर हो
अभय भुजंग पीर हो
भेष या हो जंग हो
वीर जो तरंग हो
अभेद उसके अंग हो
कृष्ण जिसके संग हो
धीर हो, अधीर हो
पर वो धर्मवीर हो
अचूक जिसके तीर हो
थल हो या हो नीर हो।
बल प्रबल, ना ढल सके
शौर्य जो उबल सके
कुटिल अकल, जो छल सके
अटल भी जिससे टल सके।
मानुष जो एक सुधीर हो
समर्थवान वीर हो।
समर्थवान वीर हो
अभय भुजंग पीर हो।।
✍️ सारांश सिंह ‘प्रियम’

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