समरसता दिखती नहीं, कलुषित है परिवेश।
समरसता दिखती नहीं, कलुषित है परिवेश।
मजहब पर नित बहस कर, तोड़ रहे हैं देश।।
तोड़ रहे हैं देश, एकता घायल दिखती।
मरते राम-रहीम, अमन की आह निकलती।
रोग, आपदा, कलुष, भूख से मरती जनता।
कलुषित है परिवेश, नहीं दिखती समरसता।।
सतीश पाण्डेय