समय
नहीं समझता कभी किसी का रुदन या परिहास ।
समय नचाता कहीं किसी को, कहीं किसी का दास।
हरिश्चन्द्र एक सत्यनिष्ठ, दुनिया का बड़ा सहारा।
पत्नी-बेटे-स्वयं बिक गए, समय ने ऐसा मारा।
महाबली रावण का दसों दिशाओं में हल्ला ।
कहाँ गई सोने की लंका बचा न कोई छल्ला ।
राम राम जय राम सियावर रामचन्द्र है, हाय ।
सोने का नकली हिरण भी कैसा शोर मचाय।
कहाँ गया वह रामराज्य ? लक्ष्मण के जैसा भाई।
बिखरे पन्नों में करता हूँ संबंधों की करता हूँ तुरपाई।
अब तो जाति-धर्म वोट का कारण बन उभरा है।
जनता के दिल में मुट्ठी भर दाने बन उभरा है।
भीख माँगते दीख पड़ते हैं ज्ञानी-गुणी-सुजान ।
आगे की पंक्ति में बैठे गुणहीनों की खान ।
हाथ-आँत के झगड़े में पैसा हो जाता खास ।
समय नचाना कहीं किसी को कहीं किसी का दास!