समय
अपने समय को बदलते देखती
वो औरत!
उसकी दर्द भरी आंखों में
तैरता एक सैलाब
जो कहना चाहता
अपने दर्द की कहानी
पर उस दर्द को दबा
न जाने कितने लोगों की बुरी नजर
उसे अपने दर्द को बयां करने नहीं देती
वह दर्द भरी आंखें
सिर्फ शून्य को ताकती
मठ का विश्रृंखलित जीवन
सुबह से शाम बस काम
गायों के लिए घास
भगवान के लिए फूलों की माला
गूंथना
आरती के समय घंट बजाना
खेतों से घास काटते
गांव की तरफ जाते
उसके पांव क्यों रुक जाते हैं ?