समय सदा एक सा नही रहता है।
कुछ फूल क्षखिले थे गुलशन मे ,
कुछ मुरझाये रहते थे।
उल्टी हवा चली एक ऐसी ,
खिलने वाले मुरझा गये और,
मुरझाने वाले खिल उठे।
ये मत समझो वक्त हमारा
बन्धा हुआ, और धंधा पुस्तैनी है।
बालू की दीवार पे लटकी बेल ,
फूल की बौनी है।
सच कहने का हमे बड़ा शौक है ,
झूठे सुनकर भी बड़े बे खौफ है।
नज़रे झुकी – झुकी सी चेहरा म्लीनहै,
पहचानोगे किसी दिन हमे निश्चत यकीन है।