समय लिखेगा कभी किसी दिन तेरा भी इतिहास
मोरपंख से, स्वर्णाक्षर में, क्रीड़ा-रुदन-हास
समय लिखेगा कभी किसी दिन तेरा भी इतिहास।
नव प्रभात हो, नव वेला हो, प्रतिपल नव-नव रूप रहे,
मंजुल मंजु गान प्रसारित, मुदित प्रभा नव भूप रहे,
हे मनुपुत्र, आनंदरूप, तू बिखरा अपने हस्तयुगल से
जगतीतल के खण्ड-खण्ड पर स्फित मधुमय हास।
समय लिखेगा कभी किसी दिन तेरा भी इतिहास।
जन गण का मन रंजन बन तू, व्यथा हरे मुस्कान बने तू
वनपलाश-से बिम्ब अधर पर आशाओं का मान बने तू
साहस का उल्लास बने तू, स्वाभिमान मुखमंडल से
रव मुखरित हो प्रतिपल तेरा, भृकुटी नवल विलास।
समय लिखेगा कभी किसी दिन तेरा भी इतिहास।
जब अटल विश्व का तान तुम्हारे रोमों से बरसेगा।
वायु के कण-कण में सुरभित गान तेरा सरसेगा।
जब पुष्प दलों पर संदेशों का पत्र कभी लहराएगा।
अंगड़ाई ले उठें विश्व के नव-नव पल्लव हास!
अकल कलाधर कुशल महानट पद-पद नर्तन लास!
समय लिखेगा तभी उसी दिन तेरा भी इतिहास।