समय रहते सम्भल लेते
सुनो जी..
लक्ष्मी ने अपने पति रोहित से कहा-
अब ऐसा करना क्या ठीक रहेगा, उम्र ढलती जा रही है जैसे सूर्य दिन ढलने के बाद उतना तपीला नहीं रह जाता ठीक उसी तरह …..
तुम समझ रहे हो न मैं क्या कह रही हूँ?
“रोहित सबकुछ अनसुना करते हुए अपना काम करता रहा”
हालांकि लक्ष्मी के कहने पर (क्योंकि लक्ष्मी वाकिफ़ थी) डॉक्टर्स भी कई दफ़े सलाह दे चुके थे
कि हर चीज़ की एक उम्र होती है। इस तरह वक्त गुज़ारना ठीक नहीं.. मगर सुने कौन?
चंद महीनो तक सिलसिला ज़ारी रहा, आखिरकर रोहित ने लक्ष्मी की बात मान ली!।
मगर अब अफ़सोस ! अब काफी देर हो चुकी थी नतीज़न हुआ वही जिस बात का लक्ष्मी को हमेशा से ही डर रहता था।
रोहित भी अब समझने लगा कि मुझसे वाकई गलती हुई है, कई दवा-इलाज़ और कर्मकाण्डों के बावज़ूद उनकी कोई संतान न हुई।
वो आज दोनों जी तो रहे हैं, उनमे एक-दूसरे के प्रति गहरा प्रेम भी है मगर इस तरह जीना भी उन्हें कभी -कबार दुश्वार भी लगता है।
” रोहित अब कभी पापा नहीं बन सकते और लक्ष्मी माँ ”
कुछ कलंक से परिभाषित करते हैं उन्हें और समाज पीठ पीछे कई बातें बोलता रहता है । ( ज़ाहिर है)
” बिना संतान की दंपति ”
जो चंद मज़े के लिए अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को नया संसार नहीं दिखा सके । रोहित लक्ष्मी की तरह और भी कई परिवार ऐसे हैं जिनकी कोई संतान नहीं .. इस मस्तमौला कलयुग में ऐसे हज़ारों कारनामे हैं …..
#काश ! बस #काश !
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सर्वाधिकार सुरक्षित
✍बृजपाल सिंह देहरादून/Dehradun