” समय यहाँ बहलाता है ” !!
कोई भी हम काज करें वह ,
कृत्य यहाँ कहलाता है !
चिंतन , मनन , सलीके से हो ,
संस्कारों में आता है !!
काज हमारे प्राकृत हैं कुछ ,
विकृत और संस्कृत हमसे !
शुद्ध आचरण बंधे हुए हैं ,
बस केवल संस्कारों से !
जन्म मरण तक संस्कारों से ,
मनुज कहाँ बच पाता है !!
हुआ जन्म जबसे ही हमको ,
घुट्टी मिलती जाती है !
नाम जुड़ा है , नैतिक शिक्षा ,
माता ही दे पाती है !
कुछ संस्कार विरासत में हैं ,
कुछ का पिछला नाता है !!
गुरुजन , मित्र , पिता ,समाज से,
बहुतेरा कुछ पाते हैं !
दादा दादी , नाना नानी ,
आगे बढ़कर आते हैं !
सद्चरित्र जो हमें लुभाते ,
ठहराव उसी से आता है !!
जीवन की उपलब्धि सारी ,
संस्कारों पर निर्भर है !
अगर चरित्र सत पर आधारित ,
जीवन लगता निर्झर है !
शुद्धिकरण बस सतत बना हो ,
सबको यही लुभाता है !!
अब संस्कार बचे थोड़े हैं ,
घटती यहाँ संस्कृति है !
अगर समय पर ना चेते तो ,
बढ़ना यहाँ विकृति है !
मिल जुल कर दायित्व निभायें ,
समय यहाँ बहलाता है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )