समय बदलते सूखी धरती मुस्काती:: जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट ५१)
मुक्तक
समय बदलते सूखी धरती मुस्काती जैसे बाला ।
नयी नवेली ओढ़ चुनरिया मदमाती जैसे बाला ।
सृष्टि — चक्र का घूर्णन निश्चित सुखद समय भी लाता यों
नवल प्रकृति की गोद — मोद में शर्माती जैसे बाली ।।५१!!
——- जितेन्द्र कमल आनंद