” समय खड़ा इस छोर पर ” !!
थिरक रहा है , मन पतंग सा ,
बस साँसों की डोर पर !!
आज उमंगें नाच रही हैं ,
नये – नये , सुर – ताल हैं !
लगे पिघलती बर्फ , दर्द की ,
खुशियाँ करें धमाल है !
लहरों के संग , करें किलोलें ,
समय खड़ा , इस छोर पर !!
अंतहीन सी , डगर चले हैं ,
लेते यहाँ पड़ाव हैं !
धूप छाँव का , खेल अनूठा ,
हार जीत के दाँव हैं !
कभी अमावस है , तो पूनम ,
नज़र टिकी है , भोर पर !!
यहाँ लालसा , खत्म न होती ,
पतझड़ संग , बहार है !
कभी यहाँ , तकरार छिड़े है ,
पल में पलता प्यार है !!
कभी मौन पर , प्रश्न मचलते ,
कभी उठे हैं , शोर पर !!
नभ को छूती , कभी उमंगें ,
खिले खिले से रंग ले !
उम्र फिसलती , कभी लगे है ,
हाथों में ये चंग ले !
दृग बिंदु , खुशियों के ढलते ,
बस पलकों की , कोर पर !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )