समय कि धारा में
समय कि धारा में,
कितने को बदलते देखा
मुसाफ़िर की उलटी चाल देखी,
उनके नसीबों को टहलते देखा।
समय कि धारा में,
राम कि मर्यादा को दूषित होते देखा,
रावण को महान बनते देखा,
पतिव्रता को तड़पते देखा,
वैश्या को राज करते देखा।
समय कि धारा में,
गंगा को अपवित्र होते देखा,
पुण्यात्मा का जीवन नर्क बनते देखा,
ईमानदार को गतिहीन होते देखा,
बेइमान को गति शील होते देखा।
समय कि धारा ने,
ना जाने क्या क्या
रो रो कर देखा।