समझ और परख
कल इंस्टाग्राम पर पढ़ा था, ज़िन्दगी में जब तक जिंदा हैं परेशानियां रहेंगी, बस शक्ल और उसके मायने बदल जाएंगे। मैं इस बात से सहमत भी हूँ, पर इन परेशानियों को समझ लेने या स्वीकार लेने की हिम्मत भी होनी चाहिए।
हम किसी के चले जाने से इसलिए घबरा जाते हैं क्योंकि इसके बाद कि तैयारी हमने कहीं सीखी ही नहीं। हमें बस इतना पता है कि साथ रहने के लिए हम क्या क्या कर सकते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही है, मेरे पास समय का बस एक पक्ष ही है, जिसमे मुझे लगता है मैं सब ठीक कर लूंगा, पर इससे कम ही रहा।
मैं कई बार अपने फैसलों पर गौर करता हूँ तो तब सही लग रहे सारे पॉसिबल फैक्ट्स अब बेकार लगते हैं। मेरा मन अजीब सा हो गया है। मुझे मालूम है कि मेरा मन शांत नहीं है लेकिन वो एक टक किसी चीज़ को देखकर सम्भल रहा है, किसी निश्चित दूरी को अंत तक समझ कर समय काट रहा है, सोच रहा है!