सभ्यता
सभ्यता
सभ्यता अमूल्य है इसे सदा सजाइये।
सद्विचार ज्ञान से इसे सदा निखारिये।
भौतिकी विकास हो सदैव ज्ञान दिव्य हो।
धर्म स्वस्थ सत्य हो सदैव भाव भव्य हो।
उन्नयन स्वराष्ट्र से मनुष्य लोग धन्य हों।
बुद्ध हों प्रबुद्ध सब स्वदेश भावजन्य हों।
योग नीति शिक्ष-दीक्ष सौम्य राग कामना।
दीन वृत्ति नष्ट हो विवेकशील भावना। सांस्कृतिक प्रगति दिखे सुखानुभूति नित्य हो।
सभ्यता फले- फुले विचार भाव स्तुत्य हो।
देख देख सभ्यता नवीनता बनी रहे।
तकनिकी विकास से जरूरतें सुखी रहें।
राजनीति अर्थनीति धर्मनीति सुष्ठ हो।
लोक में पवित्र धारणा विचार पुष्ट हो।
संतुलन समग्र अंग में सदा बना दिखे।
हंसवृत्ति चित्तवृत्ति की कथा सदा लिखे।
भाव पक्ष लोक पक्ष दिव्य पक्ष देह हो।
स्वर्ग के समान नव्य- नव्य स्वर्ण गेह हो।
काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।